CLASS 6 हिंदी पाठ – रहीम के दोहे कवि –अब्दुर्रहीम खानखाना
दोहों की व्याख्या
1. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहाँ करे तरवारि।।
शब्दार्थ –
रहिमन = रहीम कहते हैं
देखि = देखकर
बड़ेन = बड़े लोगों को
लघु = छोटे
डारि = छोड़ देना, त्यागना
जहाँ = जहाँ पर
काम = कार्य
आवे = आता है
सुई = सुई (छोटा औजार)
तरवारि = तलवार (बड़ा हथियार)
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'मल्हार' के पाठ-5 से लिया गया है, जिसके कविं 'अब्दुर्रहीम खानखाना' है।
प्रसंग – इस दोहे में कवि ने छोटे-बड़े सबके महत्व को समझाते हुए कहा है कि समाज में किसी को भी तुच्छ नहीं समझना चाहिए।
व्याख्या – रहीम कहते हैं कि बड़े लोगों का साथ पाकर कभी छोटे लोगों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। हर व्यक्ति का अपना अलग महत्व होता है। जैसे सुई के काम को तलवार से नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार छोटे कार्य भी छोटे ही कर सकते हैं। अतः सभी का सम्मान करना चाहिए।
विशेष – छंद : दोहा
अलंकार : दृष्टांत, अनुप्रास
शिक्षा : छोटे-बड़े सबका जीवन में महत्व है।
2. तरूवर फल नहिं खात है, सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपत्ति सँचहि सुजान।।
शब्दार्थ –
तरूवर = वृक्ष
फल = फल
नहिं खात है = स्वयं नहीं खाते
सरवर = तालाब, सरोवर
पियहिं = पीते
पान = पानी
पर काज = दूसरों का कार्य
हित = भलाई
संपत्ति = धन
सँचहि = संचित करते हैं
सुजान = सज्जन व्यक्ति, बुद्धिमान
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'मल्हार' के पाठ-5 से लिया गया है, जिसके कविं 'अब्दुर्रहीम खानखाना' है।
प्रसंग – इस दोहे में कवि ने वृक्ष और तालाब का उदाहरण देकर बताया है कि सज्जन व्यक्ति सदैव दूसरों के हित में कार्य करता है।
व्याख्या – रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते और तालाब अपना जल स्वयं नहीं पीते, उसी प्रकार सच्चे और सज्जन व्यक्ति भी अपनी संचित संपत्ति का उपयोग दूसरों की भलाई में करते हैं। यह परोपकार ही उनके जीवन की सबसे बड़ी पहचान है।
विशेष – छंद : दोहा
अलंकार : दृष्टांत, अनुप्रास
शिक्षा : सज्जन वही है जो अपनी संपत्ति परोपकार में लगाए।
3. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाए।।
शब्दार्थ –
धागा = सूत का तार, यहाँ प्रेम का प्रतीक
प्रेम = स्नेह, आत्मीय संबंध
छिटकाय = तोड़ देना
टूटे = बिखरे हुए
मिले = पुनः जुड़ना
गाँठ = गाठ, गिरह
परि जाय = पड़ जाती है
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'मल्हार' के पाठ-5 से लिया गया है, जिसके कविं 'अब्दुर्रहीम खानखाना' है।
प्रसंग – कवि मनुष्य को चेताते हैं कि प्रेम-संबंध बहुत नाजुक होते हैं, इसलिए उन्हें कभी तोड़ना नहीं चाहिए।
व्याख्या – रहीम कहते हैं कि प्रेम धागे के समान नाजुक होता है। यदि हम प्रेम का धागा तोड़ देते हैं, तो वह फिर पहले जैसा नहीं बन सकता। यदि जोड़ भी दिया जाए, तो उसमें गाँठ पड़ जाती है। इसलिए संबंधों को सदा संभालकर रखना चाहिए।
विशेष – छंद : दोहा
अलंकार : दृष्टांत
शिक्षा : प्रेम को टूटने न दें, संबंधों की कोमलता बनाए रखें।
4. रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।।
शब्दार्थ –
पानी = जल / मान-सम्मान / चमक
राखिये = बनाए रखिए
बिनु = बिना
सून = व्यर्थ
ऊबरै = सँवरना, ठीक होना
मोती = रत्न
मानुष = मनुष्य
चून = आटा
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'मल्हार' के पाठ-5 से लिया गया है, जिसके कविं 'अब्दुर्रहीम खानखाना' है।
प्रसंग – कवि ने यहाँ "पानी" शब्द को तीन अर्थों (जल, इज्जत, चमक) में प्रयोग करके उसके महत्व को समझाया है।
व्याख्या – रहीम कहते हैं कि पानी (जल) के बिना आटा गूँथा नहीं जा सकता, मोती बिना चमक के व्यर्थ है, और मनुष्य बिना इज्जत के निरर्थक है। इसलिए पानी (मान-सम्मान और उपयोगिता) हमेशा बनाए रखना चाहिए।
विशेष – छंद : दोहा
अलंकार : श्लेष
शिक्षा : जल, चमक और सम्मान के बिना जीवन अधूरा है।
5. रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।।
शब्दार्थ –
बिपदा = विपत्ति, कठिन समय
भली = अच्छी
थोरे = थोड़े
हित = मित्र, उपकारी
अनहित = हानि करने वाला
जगत = संसार
जानि परत = पता चलता है
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'मल्हार' के पाठ-5 से लिया गया है, जिसके कविं 'अब्दुर्रहीम खानखाना' है।
प्रसंग – कवि बताते हैं कि संकट आने पर ही मनुष्य का असली चरित्र और मित्रता की परख होती है।
व्याख्या – रहीम कहते हैं कि थोड़े समय की विपत्ति भी अच्छी होती है, क्योंकि उसी समय हमें यह समझ में आता है कि कौन हमारा सच्चा मित्र है और कौन केवल दिखावे का।
विशेष – छंद : दोहा
अलंकार : पदमैत्री
शिक्षा : विपत्ति ही मित्र की असली पहचान कराती है।
6. रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल।।
शब्दार्थ –
जिह्वा = जीभ
बावरी = पागल
कहि गइ = बोल देती है
सरग = स्वर्ग
पताल = पाताल
आपु = स्वयं
भीतर = अंदर
कपाल = सिर
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'मल्हार' के पाठ-5 से लिया गया है, जिसके कविं 'अब्दुर्रहीम खानखाना' है।
प्रसंग – कवि मनुष्य को सचेत करते हैं कि वाणी के कारण ही अक्सर लाभ या हानि होती है।
व्याख्या – रहीम कहते हैं कि जीभ बहुत चंचल होती है। यह स्वर्ग-पाताल तक की बातें बोल सकती है। बोलने के बाद यह मुँह के अंदर चली जाती है, लेकिन उसके परिणाम सिर को भुगतने पड़ते हैं। इसलिए वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए।
विशेष – छंद : दोहा
अलंकार : दृष्टांत
शिक्षा : वाणी सोच-समझकर प्रयोग करनी चाहिए।
7. कहि रहीम संपत्ति सगे, बनत बहूत बहु रीत।
विपत्ति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।।
शब्दार्थ –
संपत्ति = धन-संपदा
सगे = रिश्तेदार
बनत = बन जाते हैं
बहु रीत = अनेक तरीके
विपत्ति = मुसीबत
कसौटी = परखने का साधन
साँचे = सच्चे
मीत = मित्र
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'मल्हार' के पाठ-5 से लिया गया है, जिसके कविं 'अब्दुर्रहीम खानखाना' है।
प्रसंग – कवि ने यहाँ सच्चे और झूठे मित्र की पहचान बताई है।
व्याख्या – रहीम कहते हैं कि जब तक मनुष्य के पास धन रहता है, लोग उससे मित्रता करने और रिश्ते बनाने के कई उपाय करते हैं। लेकिन जब विपत्ति आती है तब वही मित्र सच्चा कहलाता है जो उस समय काम आता है।
विशेष – छंद : दोहा
अलंकार : अनुप्रास
शिक्षा : विपत्ति ही सच्चे मित्र की पहचान कराती है।
अभ्यास प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए -
1. मोती के संदर्भ में पानी का अर्थ चमक से है।
2. सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति के समय होती है।
3. 'जिह्वा' का तद्भव शब्द जीभ है।
4. स्वयं अपना फल वृक्ष नहीं खाते हैं।
5. बावरी का अर्थ पागल है।
प्रश्न 2. सही विकल्प चुनकर लिखिए -
1. कठिन परिस्थितियों में पहचान होती है-
(i) सज्जन की
(ii) दुर्जन की
(iii) शत्रु की
(iv) मित्र की
2. धन संपदा बढ़ने पर होता है -
(i) लोग ईर्ष्या करते हैं
(ii) खुश होते हैं।
(iii) जुड़ने लगते हैं
(iv) दूर होने लगते हैं।
3. 'मनुष्य' के लिए पानी का अर्थ है -
(i) गुण
(ii) साधारण जल
(iii) चमक
(iv) मान-सम्मान
4. तलवार और सुई के दृष्टान्त से कवि कहना चाहते हैं कि-
(i) दोनों छेद करने के काम आती हैं
(ii) दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं
(iii) दोनों नुकसानदायक हैं
(iv) दोनों का अपना-अपना महत्व है।
5. "गाँठ परि जाय" का अर्थ है-
(i) संबंधों में आत्मीयता बढ़ना
(ii) संबंधों में दूरी होना
(iii) संबंधों में दुश्मनी होना
(iv) संबंधों में कोई फर्क न पड़ना।
पाठ से प्रश्न-अभ्यास
मेरी समझ से
(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सटीक उत्तर कौन-सा है ? उसके सामने तारा (*) बनाइए -
1. "रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गई सरग पताल। आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल।" दोहे का भाव है-
• सोच-समझकर बोलना चाहिए।
• मधुर वाणी में बोलना चाहिए।
• धीरे-धीरे बोलना चाहिए।
• सदा सच बोलना चाहिए।
उत्तर- (क) 1. * सोच-समझकर बोलना चाहिए।
2. "रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि। जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारी" इस दोहे का भाव क्या है ?
• तलवार सुई से बड़ी होती है।
• सुई का काम तलवार नहीं कर सकती।
• तलवार का महत्व सुई से ज्यादा है।
• हर छोटी-बड़ी चीज का अपना महत्व होता है।
उत्तर- 2. * हर छोटी-बड़ी चीज का अपना महत्व होता है।
(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए और कारण बताइए कि आपने यही उत्तर क्यों चुने ?
उत्तर– (ख)
1. क्योंकि मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है। उसे अपनी वाणी पर संयम रखते हुए सोच-समझकर बोलना चाहिए, ताकि बाद में किसी प्रकार का पश्चाताप न करना पड़े।
2. इस दोहे का भाव यह है कि संसार में न तो कोई छोटा होता है और न ही बड़ा। प्रत्येक व्यक्ति का अपना अलग महत्व है। हमें किसी का मूल्यांकन उसके आकार या पद से नहीं करना चाहिए। इसी तथ्य को कवि रहीम ने सुई और तलवार के उदाहरण से स्पष्ट किया है।
मिलकर करें मिलान
पाठ में से कुछ दोहे स्तंभ 1 में दिए गए हैं और उनके भाव स्तंभ 2 में दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और रेखा खींचकर सही भाव से मिलान कीजिए।
| स्तम्भ-1 | स्तम्भ-2 |
|---|---|
|
1. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर न मिले, मिले गाँठ पड़ि जाय।। |
1. सज्जन परहित के लिए ही संपत्ति संचित करते हैं। |
|
2. कहि रहीम संपत्ति सों, बनत बहुत बहु रीत। विपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।। |
2. सच्चे मित्र विपत्ति या विपदा में भी साथ रहते हैं। |
|
3. तुकर फल लौं लघु रहै, सरस पियावै नीर। कहि रहीम पर काज हित, संपत्ति सँचै सरीर।। |
3. प्रेम या रिश्तों को सहनशीलता से बनाए रखना चाहिए। |
उत्तर: 1 → 3, 2 → 2, 3 → 1
पंक्तियों पर चर्चा
नीचे दिए गए दोहों पर समूह में चर्चा कीजिए और उनके अर्थ या भावार्थ अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए -
(क) “रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय ।।”
उत्तर (क) – रहीम जी कहते हैं कि यदि मुसीबत थोड़े समय के लिए आए तो वह भी हमारे लिए अच्छी साबित होती है। क्योंकि कठिन समय में ही यह पता चलता है कि कौन हमारा सच्चा मित्र और शुभचिंतक है तथा विपरीत परिस्थिति में कौन साथ छोड़ देता है।
(ख) “रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाला।।“
उत्तर (ख) – रहीम जी कहते हैं कि हमारी जीभ कभी-कभी पागल सी हो जाती है। यह स्वर्ग से पाताल तक की व्यर्थ बातें कर डालती है। कई बार ऐसा भी होता है कि जीभ कुछ अनुचित बोल देती है और चुप हो जाती है, लेकिन उसकी सज़ा हमें भुगतनी पड़ती है। इसीलिए मनुष्य को हमेशा सोच-समझकर ही वाणी का प्रयोग करना चाहिए।
सोच-विचार के लिए
दोहों को एक बार फिर से पढ़िए और निम्नलिखित के बारे में पता लगाकर अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए -
"रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।"
(क) इस दोहे में 'मिले' के स्थान पर 'जुड़े' और 'छिटकाय' के स्थान पर 'चटकाय' शब्द का प्रयोग भी लोक में प्रचलित है। जैसे-
"रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय।।"
इसी प्रकार पहले दोहे में 'डारि' के स्थान पर 'डार', 'तलवारि' के स्थान पर 'तलवार' और चौथे दोहे में 'मानुष' के स्थान पर 'मानस' का उपयोग भी प्रचलित है। ऐसा क्यों होता है ?
उत्तर- ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारे यहाँ अनेक भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती है। स्थानों के आधार पर थोड़ी-थोड़ी दूर में बोलियों में भी बदलाव देखा जाता है। इसलिए डारि को डार, तलवारि को तलवार और मानुष के स्थान पर मानस का प्रयोग होता है।
(ख) इस दोहे में प्रेम के उदाहरण में धागे का प्रयोग ही क्यों किया गया है ? क्या आप धागे के स्थान पर कोई अन्य उदाहरण सुझा सकते हैं? अपने सुझाव का कारण भी बताइए।
उत्तर- कवि प्रेम व धागे की समानता बताते हुए कहना चाहते हैं कि जिस प्रकार धागे के टूटने पर उसे जोड़ने के लिए उस पर गाँठ लगानी पड़ती है, ठीक उसी प्रकार रिश्तों में एक बार दरार पड़ जाए तो भी मन में गाँठ रह जाती है। हम चीजों को भुला नहीं पाते। इसे दूसरे तरीके से भी समझ जा सकता है।
जैसे- दूध फट जाए तो उस फटे दूध से हम कई तरह की चीजें बना सकते हैं लेकिन उसे उसके मूल रूप में नहीं ला सकते। ऐसे ही रिश्तों में जब एक बार मनमुटाव हो जाता है तो कितना भी प्रयत्न कर लो वे संबंध उतने मधुर नहीं होते जैसे पहले थे।
2. "तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपत्ति सँचहि सुजान।।"
इस दोहे में प्रकृति के माध्यम से मनुष्य के किस मानवीय गुण की बात की गई है ? प्रकृति से हम और क्या-क्या सीख सकते हैं ?
उत्तर- प्रकृति के माध्यम से कवि ने इस दोहे में परोपकार या परहित की भावना के बारे में बात की है। प्रकृति हमें अनेक तरीकों से परहित की बातें सिखाती है। जैसे- वृक्ष अपना फल स्वयं नहीं खाते, जलाशय अपना जल स्वयं ग्रहण नहीं करते। ठीक उसी प्रकार जो सज्जन होते हैं वे अपने संचित धन का प्रयोग दूसरों की भलाई में लगाते हैं। प्रकृति अपने अन्य रूपों से भी अनेक संदेश देती है। जैसे–
(1) झरने और नदियाँ निरन्तर आगे बढ़ने का संदेश देते हैं। चाहे कैसी भी बाधाएँ आए वो निरन्तर आगे बढ़ते रहते हैं।
(2) वृक्ष अपनी छाया और फलों से राहगीरों को शीतलता प्रदान करते व उनकी भूख मिटाते हैं।
(3) सागर अपनी विशालता और गहराई से हमें एक अच्छे आचरण की सीख देता है।
(4) पर्वत अपनी अडिगता से हमें दृढ़ रहना सिखाते हैं।
(5) फूल की सुगंध और मनमोहक रूप हमें सदाचरण की शिक्षा देते हैं।
इसी तरह प्रकृति अपने विभिन्न रूपों से कुछ-न-कुछ संदेश देती है।
शब्दों की बात
हमने शब्दों के नए-नए रूप जाने और समझे। अब कुछ करके देखें -
शब्द-संपदा - कविता में आए कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। इन शब्दों को आपकी मातृभाषा में क्या कहते हैं ? लिखिए।
| कविता में आए शब्द | मातृभाषा में समानार्थक शब्द |
|---|---|
| तरूवर | पेड़, वृक्ष |
| बिपत्ती | विपदा, मुसीबत |
| छिटकाए | तोड़ना, चटकाना |
| सुजान | सज्जन, अच्छे लोग |
| सरवर | तालाब, जलाशय |
| साँचें | सच्चे |
| कपाल | दिमाग, खोपड़ी |
