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पहली बूंदें।Pehli Boonde।अर्थ, व्याख्या और प्रश्न-उत्तर सहित”

पहली बूँद कविता, वर्षा ऋतु की पहली बूँद, धरती पर हरियाली और जीवन, कवि गोपालकृष्ण कौल

CLASS 6 हिंदी 
पाठ – पहली बूंदे
लेखक – गोपालकृष्ण कौल


1. वह पावस का प्रथम दिवस जब
पहली बूँद धरा पर आई।
अंकुर फूट पड़ा धरती से,
नव-जीवन की ले अँगड़ाई।
धरती के सूखे अधरों पर,
गिरी बूँद अमृत-सी आकर।
वसुंधरा की रोमावलि-सी,
हरी दूब पुलकी-मुसकाई।
पहली बूँद धरा पर आई।।


संदर्भ- यह पद्यांश पाठ्यपुस्तक “मल्हार” के पाठ “पहली बूँद” से लिया गया है। इसके रचयिता गोपालकृष्ण कौल हैं।

प्रसंग- इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु की पहली बूँद के धरती पर पड़ने से होने वाले परिवर्तन और उत्साह का चित्रण किया है। बरसात की शुरुआत से प्रकृति नवजीवन से भर उठती है।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि जब वर्षा का पहला दिन आया और पहली बूँद धरती पर गिरी, तो मानो सोई हुई धरती जाग उठी। मिट्टी के भीतर छिपे बीज अंकुरित होकर बाहर आ गए और ऐसा प्रतीत हुआ कि नए जीवन का आरंभ हो गया है। सूखी धरती पर ये बूँदें अमृत की तरह टपकीं और उसे जीवनदान दिया। वसुंधरा पर उगी हुई हरी दूब ऐसे दिखी जैसे धरती की रोमावली आनंद से मुस्कुरा रही हो। इस प्रकार पहली बूँद से पूरी धरती पुलकित और प्रसन्न हो उठी।

विशेषता- इस पद्यांश में कवि ने वर्षा के स्वागत और उससे आई हरियाली को सहज भाषा में उकेरा है। उपमा और मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है, जिससे दृश्य और अधिक जीवंत हो उठता है।

2. आसमान में उड़ता सागर,
लगा बिजलियों के स्वर्णिम पर।
बजा नगाड़े जगा रहे हैं,
बादल धरती की तरुणाई।
पहली बूँद धरा पर आई।।


संदर्भ- यह अंश “मल्हार” नामक पाठ्यपुस्तक के “पहली बूँद” पाठ से लिया गया है। इसके रचनाकार गोपालकृष्ण कौल हैं।

प्रसंग- इसमें कवि ने बादलों और बिजली के माध्यम से आकाश के अद्भुत रूप का वर्णन किया है। वर्षा के आने से धरती में उत्साह और उमंग जागृत होती है।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि जब आकाश में काले बादल छा जाते हैं और बिजली चमकती है, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो समुद्र ने सुनहरे पंख लगाकर आकाश में उड़ान भर ली हो। बादलों की गड़गड़ाहट नगाड़ों की तरह सुनाई देती है, जो धरती की तरुणाई को जगाने का कार्य कर रही हो। पहली बूँद के धरती पर गिरते ही वातावरण में नई ऊर्जा और सौंदर्य का संचार हो जाता है।

विशेषता- इस पद्यांश में प्रकृति का अनुपम सौंदर्य उभरकर सामने आता है। कवि ने बिजली और बादलों की तुलना क्रमशः पंख और नगाड़े से करके दृश्य को जीवंत बना दिया है। भाषा सरल, चित्रात्मक और प्रवाहमयी है।



3. नीले नयनों-सा यह अंबर,
काली पुतली-से ये जलधर।
करुणा-विगलित अश्रु बहाकर,
धरती की चिर-प्यास बुझाई।
बूढ़ी धरती शस्य-श्यामला
बनने को फिर से ललचाई।
पहली बूँद धरा पर आई।।



संदर्भ- यह पद्यांश भी पाठ्यपुस्तक “मल्हार” के “पहली बूँद” से लिया गया है, जिसके कवि गोपालकृष्ण कौल हैं।

प्रसंग- इस भाग में कवि ने आकाश और बादलों का मानवीकरण करते हुए धरती की प्यास बुझाने का भाव प्रस्तुत किया है।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि नीला आकाश मानो नीली आँखों के समान दिखाई देता है और उस पर छाए काले बादल आँखों की पुतली के समान लगते हैं। वे जैसे करुणा से पिघलकर वर्षा के आँसू बहा रहे हों, जिससे धरती की लंबे समय से सूखी प्यास बुझ गई। बूढ़ी और बंजर धरती फिर से हरी-भरी होकर फसलों से लहलहाने को आतुर हो उठती है। इस प्रकार पहली बूँद ने धरती को नवजीवन और ताजगी प्रदान की।

विशेषता- यहाँ कवि ने उपमा अलंकार का प्रभावी प्रयोग किया है। आकाश और बादलों को मानवीय रूप देकर चित्रण को भावपूर्ण बनाया गया है। भाषा सहज, काव्यात्मक और भावपूर्ण है।



पाठ से प्रश्न-अभ्यास


मेरी समझ से


(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सटीक उत्तर कौन-सा है ? उसके सामने तारा (*) बनाइए –

1. कविता में ‘नव-जीवन की ले अँगड़ाई’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ?

🔹बादल
🔹बूँद
🔹अंकुर
🔹पावस

उत्तर – *अंकुर।
पहली बूँद के धरती पर गिरते ही बीज अंकुरित हो उठते हैं और ऐसा लगता है मानो उन्होंने नए जीवन की शुरुआत की हो।



2. ‘नीले नयनों-सा यह अंबर, काली पुतली-से ये जलधर’ में ‘काली पुतली’ है –

🔹बारिश की बूँदें
🔹वृद्ध धरती
🔹नगाड़ा
🔹बादल

उत्तर – *बादल।
कवि ने नीले आकाश को आँखों से तुलना की है और उसमें छाए बादलों को काली पुतली के समान माना है।


(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए कि आपने ये उत्तर क्यों चुने ?


उत्तर – 1. अंकुर – जब बीजों पर वर्षा की बूँदें गिरती हैं तो वे फूटकर बाहर आ जाते हैं। यह अंकुरण कवि को ऐसे प्रतीत होता है मानो बीज अंगड़ाई लेकर नया जीवन पा रहे हों।


2. बादल – नीला आकाश कवि को आँखों की तरह लगता है और उस पर मंडराते बादल आँख की पुतली जैसे दिखाई देते हैं, इसलिए बादल सही विकल्प है।

 

 मिलाकर करें मिलान

कविता की कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन पंक्तियों में कुछ शब्द रेखांकित हैं। चाहीए और रेखांकित शब्दों के भावार्थ दिए गए हैं। इनका मिलान कीजिए –

कविता की पंक्तियाँ भावार्थ
1. आसमान में उड़ता सागर,
लगा बिजलियों के स्वर्णिम पर
2. बादल
2. बजा नगाड़े जगा रहे हैं,
बादल धरती की तरुणाई
1. मेघ-गर्जना
3. नीले नयनों सा यह अंबर,
काली पुतली-से ये जलधर
4. आकाश
4. वसुंधरा की रोमावलि-सी,
हरी दूब पुलकी-मुसकाई
3. हरी दूब

✔️ सही उत्तर (मिलान)
1 → 2
2 → 1
3 → 4
4 → 3






पंक्तियों पर चर्चा


कविता में से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं।इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया ? अपने विचार कक्षा में अपने समूह में साझा कीजिए और अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए -

प्रश्न – “आसमान में उड़ता सागर, लगा बिजलियों के स्वर्णिम पर, बजा नगाड़े जगा रहे हैं, बादल धरती की तरुणाई।“

उत्तर – इन पंक्तियों में कवि ने आकाश की सुंदरता का चित्रण किया है। काले बादलों और बिजली की चमक से ऐसा लगता है जैसे समुद्र सुनहरे पंख लगाकर उड़ रहा हो। बादलों की गर्जना नगाड़ों जैसी प्रतीत होती है जो धरती को नई ऊर्जा प्रदान करती है।



प्रश्न – “नीले नयनों-सा यह अंबर, काली पुतली-से ये जलधर। करुणा-विगलित अश्रु बहाकर, धरती की चिर-प्यास बुझाई।“

उत्तर – यहाँ कवि ने आकाश को नीली आँखों और बादलों को काली पुतली से तुलना की है। बादल करुणा से भरकर वर्षा रूपी आँसू बहाते हैं, जिनसे धरती की लम्बे समय से सूखी प्यास बुझ जाती है।


सोच-विचार के लिए


कविता को एक बार फिर से पढ़िए और निम्नलिखित के बारे में पता लगाकर अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए -

• बारिश की पहली बूँद से धरती का हर्ष कैसे प्रकट होता है ?
उत्तर – पहली बूँदें धरती पर गिरते ही उसे जीवन से भर देती हैं। सूखी और बंजर मिट्टी पर यह बूँदें अमृत की तरह गिरती हैं और धरती हरी-भरी होकर प्रसन्न हो उठती है।

• कविता में आकाश और बादलों को किनके समान बताया गया है ?
उत्तर – आकाश को नीली आँखों के समान और बादलों को उन आँखों की काली पुतलियों के समान बताया गया है।


शब्द एक अर्थ अनेक///


'अंकुर फूट पड़ा धरती से, नव-जीवन की ले अँगड़ाई' कविता की इस पंक्ति में 'फूटने' का अर्थ पौधे का अंकुरण है।'फूट' का
प्रयोग अलग-अलग अर्थों में किया जाता है, जैसे-फूट डालना,घड़ा फूटना आदि। अब फूट शब्द का प्रयोग ऐसे वाक्यों में कीजिए जहाँ इसके भिन्न-भिन्न अर्थ निकलते हों, जैसे- अंग्रेजों
की नीति थी फूट डालो और राज करो।

उत्तर - (1) दोनों भाइयों के बीच फूट पड़ गई। (मतभेद)
(2) भूकंप के कारण दीवारें फूट पड़ी। (दरारें पड़ना)
(3) घड़ा पानी भरते ही फूट गया। (टूटना, बिखरना)
(4) खुदाई होते ही जल का स्रोत फूट पड़ा। (तीव्र गति से निकलना)
(5) दीवार से टकराते ही रमेश का सिर फूट गया।(जख्मी होना)



अनेक शब्दों के लिए एक शब्द


'नीले नयनों-सा यह अंबर, काली पुतली से ये जलधर' कविता की इस पंक्ति में 'जलधर' शब्द आया है।'जलधर' दो
शब्दों से बना है, जल और धर। इस प्रकार जलधर का शाब्दिक अर्थ हुआ जल को धारण करने वाला। बादल और समुद्र, दोनों
ही जल धारण करते हैं। इसलिए दोनों जलधर हैं।वाक्य के संदर्भ या प्रयोग से हम जान सकेंगे कि जलधर का अर्थ समुद्र है या बादल। शब्दकोश या इंटरनेट की सहायता से 'धर' से मिलकर बने कुछ शब्द और उनके अर्थ ढूँढ़कर लिखिए।

उत्तर-

शब्द                             अर्थ
गदाधर---------- गदा को धारण करने वाला अर्थात् भीम।
गंगाधर----------  गंगा को धारण करने वाले अर्थात् शिव ।
धनुर्धर----------  धनुष को धारण करने वाले श्रीराम।
मुरलीधर----------  मुरली को धारण करने वाले श्रीकृष्ण।

इसी तरह चक्रधर, महीधर, गिरिधर, हलधर इत्यादि शब्द हैं।


शब्द पहेली


दिए गए शब्द-जाल में प्रश्नों के उत्तर खोजें -

(क) आसमान का समानार्थी शब्द — अंबर
(ख) आँसू का समानार्थी — अश्रु
(ग) एक प्रकार का वाद्य यंत्र — नगाड़ा
(घ) जल को धारण करने वाला — जलधर
(ङ) आँख के लिए एक अन्य शब्द — नयन
(च) एक प्रकार की घास — दूब





पाठ से आगे प्रश्न-अभ्यास


खोजबीन

प्रश्न- आपके यहाँ उत्सवों में कौन-से वाद्ययंत्र बजाए जाते हैं ? उनके बारे में जानकारी एकत्र करें और अपने समूह में उस पर चर्चा करें।
उत्तर – हमारे यहाँ त्योहारों और उत्सवों पर ढोलक, तबला, नगाड़ा, शहनाई, हारमोनियम, बाँसुरी, गिटार और डमरू जैसे वाद्ययंत्र बजाए जाते हैं। ये माहौल को आनंदमय और उत्साहपूर्ण बना देते हैं।



आइए इंद्रधनुष बनाएँ


बारिश की बूँदें न केवल जीव-जंतुओं को राहत पहुँचाती है बल्कि धरती को हरा-भरा भी बनाती है। कभी-कभी ये बूँदें आकाश में बहुरंगी छटा बिखेरती हैं जिसे 'इंद्रधनुष' कहा जाता है। आप भी एक सुंदर इंद्रधनुष बनाइए और उस पर एक छोटी-सी कविता लिखिए। इसे कोई प्यारा सा नाम भी दीजिए।

🌈 इंद्रधनुष 🌈



 1. काले-काले बादल बरसे
   बूँदें गिरती छम-छम ।
   धरती का श्रृंगार करें
   जब बारिश का हो मौसम ।।
                 बरसे बादल, मोर नाचे
                 धूप भी संग-संग गुनगुनाए।
                 तभी आसमान में देखो
                 इंद्रधनुष छा जाए ।।


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