प्रश्न 1. माटीवाली के बिना टिहरी शहर के कई घरों में चूल्हों तक का जलना क्यों मुश्किल हो जाता था?
उत्तर: माटीवाली के बिना टिहरी शहर के कई घरों में चूल्हों का जलना इसलिए मुश्किल हो जाता था क्योंकि वह माटाखान से लाई गई विशेष मिट्टी से चूल्हों को लीपने का काम करती थी। इस लेप के बिना चूल्हों को जलाना संभव नहीं था। माटीवाली का यह काम इतना महत्वपूर्ण था कि उसके बिना कोई और यह कार्य नहीं कर पाता था, और इसी वजह से टिहरी शहर में चूल्हों का जलना असंभव सा हो जाता था।
प्रश्न 2. माटीवाली का कंटर किस प्रकार का था?
उत्तर: माटीवाली का कंटर एक खास तरह का था। इसे इस्तेमाल करने से पहले ही उसने इसका ऊपरी ढक्कन काट कर हटा दिया था। ढक्कन न होने से उसे कंटर के अंदर मिट्टी भरने और उसे खाली करने में बहुत आसानी होती थी। इस कंटर में हमेशा लाल, चिकनी मिट्टी भरी रहती थी, जो उसके काम के लिए बेहद महत्वपूर्ण थी।
प्रश्न 3. माटीवाली का एक रोटी छिपा देना उसकी किस मनःस्थिति की ओर संकेत करता है?
उत्तर: माटीवाली का एक रोटी छिपाना उसकी गहरी वेदना और विवशता को दर्शाता है। उसका पति बूढ़ा और काम करने में असमर्थ था, और इस स्थिति में माटीवाली उसके लिए एक रोटी "चोरी" करने को भी तैयार हो जाती है। यह घटना उसकी अत्यधिक गरीबी, मजबूरी और लाचारी को उजागर करती है। साथ ही, यह अपने पति के प्रति उसके गहरे प्रेम और देखभाल की मानसिकता का भी स्पष्ट संकेत है।
प्रश्न 4. घर की मालकिन ने पीतल के गिलासों को अभी तक संभालकर क्यों रखा था?
उत्तर: घर की मालकिन ने पीतल के गिलासों को इसलिए संभालकर रखा था क्योंकि ये बर्तन उसके पूर्वजों की गाढ़ी कमाई से खरीदे गए थे। वह उन्हें बेचना या खोना नहीं चाहती थी क्योंकि वे उसके परिवार के इतिहास और पूर्वजों की यादों से जुड़े थे। इन गिलासों को संभालकर रखने से उसके पूर्वजों की विरासत के प्रति उसका विशेष लगाव और सम्मान झलकता है।
प्रश्न 5. माटीवाली और मालकिन के संवाद में व्यापारियों की कौन सी प्रवृत्ति का उल्लेख किया गया था?
उत्तर: माटीवाली और मालकिन के संवाद में व्यापारियों की लाभ कमाने की उस प्रवृत्ति का उल्लेख किया गया है, जहाँ वे पुरानी और अनुपयोगी समझी जाने वाली चीजों को बहुत कम दाम पर खरीदते हैं और फिर उन्हें कई गुना अधिक दामों पर बेचकर भारी मुनाफा कमाते हैं। यह संवाद इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि कैसे पुरानी वस्तुएं, जैसे कि बर्तन, भले ही हमारे लिए अनुपयोगी लगें, लेकिन उनका हमारे जीवन और पूर्वजों से गहरा भावनात्मक जुड़ाव होता है, जिसे व्यापारी अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। इस संवाद के माध्यम से लेखक ने व्यापारियों की इसी व्यावसायिक मानसिकता पर प्रकाश डाला है।
प्रश्न 6. कहानी के अंत में लोग अपने घरों को छोड़कर क्यों जाने लगे थे?
उत्तर: कहानी के अंत में लोग अपने घरों को छोड़कर इसलिए जाने लगे थे क्योंकि टिहरी बांध की दो सुरंगें बंद कर दी गई थीं, जिसके कारण शहर में जलभराव की स्थिति उत्पन्न होने लगी थी। पूरा टिहरी शहर धीरे-धीरे पानी भरने लगा था और एक बड़ी भगदड़ जैसी स्थिति पैदा हो गई थी। इसी कारण सभी लोग अपने और अपने प्रियजनों की सुरक्षा के लिए, अपने घरों को छोड़कर शहर से दूर सुरक्षित स्थानों पर जाने लगे थे।
पाठ से आगे —
(क) बांध, सड़क व अन्य सरकारी निर्माण कार्य होने पर स्थानीय लोगों को किस-किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है? चर्चा करके लिखिए।
उत्तर: बड़े बांधों, सड़कों और अन्य सरकारी निर्माण कार्यों के कारण स्थानीय लोगों को कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनकी खेती की ज़मीन और रहने का स्थान छिन जाता है, साथ ही उनके पारंपरिक रोज़गार भी बदल जाते हैं या खत्म हो जाते हैं। इन विकास परियोजनाओं का सबसे भयानक असर अक्सर गरीब, लाचार और बेसहारा लोगों पर पड़ता है।
विस्थापितों का जीवन बेहद मुश्किल और लाचारी भरा हो जाता है। उन्हें केवल अपना घर-बार ही नहीं छोड़ना पड़ता, बल्कि नए स्थान पर फिर से जीवन शुरू करने के लिए कई तरह के प्रमाण-पत्रों और दस्तावेज़ों की ज़रूरत पड़ती है, जो अक्सर उनके पास नहीं होते। माटीवाली की कहानी ऐसे ही विस्थापित लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, जिनके सामने रोज़ी-रोटी और अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाता है। ऐसे में विस्थापितों के लिए यह सबसे ज़रूरी हो जाता है कि वे इन बुनियादी सवालों के जवाब तलाशें कि वे कहाँ जाएंगे, क्या करेंगे और कैसे जीयेंगे।
(ख) इस प्रकार के विकास कार्यों के क्या-क्या फायदे होते हैं? अपने विचार लिखिए।
उत्तर: 'माटीवाली' कहानी मुख्य रूप से विकास कार्यों से उत्पन्न पीड़ा को दर्शाती है, लेकिन इन कार्यों के कुछ महत्वपूर्ण फायदे भी होते हैं। इस प्रकार के बड़े निर्माण कार्य स्थानीय लोगों के लिए नए रोज़गार के अवसर पैदा कर सकते हैं, भले ही कुछ पारंपरिक रोज़गार प्रभावित होते हों। विशेष रूप से बांधों के निर्माण से पानी और सिंचाई की समस्याएँ हल होती हैं, जिससे कृषि और ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिलता है। बांध बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं पर अंकुश लगाने में भी सहायक होते हैं, जिससे जान-माल का नुकसान कम होता है। यदि सरकारी निर्माण कार्य सही ढंग से नियोजित हों, तो वे क्षेत्र के समग्र स्वरूप को बदल सकते हैं और विकास ला सकते हैं। विस्थापन की समस्या को कम करने के लिए, अक्सर प्रशासन द्वारा विस्थापित लोगों को नई ज़मीन या उचित मुआवजा प्रदान किया जाता है, जिससे उनके पुनर्वास में मदद मिलती है।
प्रश्न 2. पहले के ज़माने में मिट्टी का उपयोग किन-किन कामों में होता था वर्तमान समय में इसका उपयोग आप कहाँ-कहाँ देखते हैं? अंतर बताते हुए लिखिए।
उत्तर: पहले के समय में मिट्टी मानव जीवन का एक अविभाज्य और जीवनदायिनी हिस्सा थी। इसका उपयोग अनेक कार्यों में होता था:
* घर बनाना: मिट्टी से घर की दीवारें बनाई जाती थीं, और घरों के आँगन व दीवारों को लीपने-पोतने के लिए इसका खूब इस्तेमाल होता था।
* बर्तन निर्माण: मिट्टी से तमाम प्रकार के बर्तन बनाए जाते थे, जिनका उपयोग खाना बनाने, खाने और पानी रखने के लिए होता था।
* भंडारण: प्राचीन समय में अनाज और अन्य सामग्री के भंडारण के लिए भी बड़े-बड़े मिट्टी के पात्र बनाए जाते थे।
वर्तमान समय में मिट्टी का उपयोग काफी बदल गया है, हालांकि कुछ क्षेत्रों में इसका महत्व अब भी बना हुआ है:
* खेती: आज भी मिट्टी का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग खेती और कृषि में होता है, जहाँ फसलें उगाई जाती हैं।
* बर्तन और मूर्तियाँ: मिट्टी के बर्तन (जैसे गमले, घड़े) और मूर्तियाँ अब भी बनाए जाते हैं, लेकिन इनका उपयोग पहले जितना व्यापक नहीं है।
* निर्माण कार्य: इमारतों के निर्माण में ईंटों और टाइलों के रूप में मिट्टी का प्रयोग होता है, जो अब बड़े पैमाने पर होता है।
मुख्य अंतर: पहले मिट्टी का उपयोग दैनिक जीवन के हर पहलू में सीधे तौर पर होता था, जबकि वर्तमान में इसका उपयोग अधिक विशिष्ट और औद्योगिक हो गया है। घरों में सीधे मिट्टी के लेप या कच्चे मिट्टी के बर्तनों का चलन अब लगभग समाप्त हो गया है। मिट्टी के उपयोग में यह बदलाव मनुष्य के पूरे जीवन शैली में आए बदलाव को दर्शाता है, और कहीं न कहीं यह प्राचीन मूल्यों के ह्रास का भी एक कारण है।
प्रश्न 3. बाँध बन जाने के बाद माटीवाली का शेष जीवन कैसा बीता होगा? कल्पना करके लिखिए।
उत्तर: बाँध बन जाने के बाद माटीवाली का शेष जीवन चुनौतियों और गहरे संघर्षों से भर जाएगा। यह कहानी विस्थापित समाज की समस्याओं और उनके दर्दनाक अनुभवों को बहुत मार्मिक रूप से दर्शाती है, और माटीवाली का जीवन इसका एक जीता-जागता उदाहरण है।
बाँध बनने के कारण उसे मिट्टी मिलना बंद हो गया, जो उसके जीवन का आधार था। अब उसे अपनी रोज़ी-रोटी के लिए अन्य साधनों की तलाश करनी पड़ेगी। न तो उसका पुराना काम रहा और न ही संघर्ष समाप्त हुआ। पुनर्वास के लिए सरकारी अधिकारियों को प्रमाण-पत्रों की आवश्यकता होगी, लेकिन माटीवाली जैसी अनपढ़ और लाचार महिला इन सभी सरकारी प्रक्रियाओं से अनभिज्ञ होगी। जिस माटाखान की मिट्टी पर वह अपना अधिकार समझती थी, उसके लिए भी उसके पास कोई कागज़ी प्रमाण नहीं होगा। ऐसे में, उसके सामने पुनर्वास की समस्या एक पहाड़ जैसी खड़ी होगी।
दूसरी ओर, शहर के लोगों के शहर छोड़ने के कारण उसकी एकमात्र आजीविका का साधन भी छिन जाएगा। शहरवासी अब अपने नए घरों में बस जाएंगे, जहाँ उसे शायद कोई काम नहीं मिलेगा। इस प्रकार, बाँध बनने के बाद माटीवाली का जीवन संघर्षों और अभावों का एक अंतहीन सिलसिला बन जाएगा, जहाँ उसे हर कदम पर नई मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
प्रश्न 4. माटीवाली की तरह और भी कई लोग हैं जिनके पास रहने के लिए अपनी जगह नहीं होती और न ही पेट भरने के लिए पर्याप्त भोजन। ऐसे लोगों के लिए सरकार को क्या-क्या उपाय करने चाहिए, शिक्षक से चर्चा कर के लिखिए।
उत्तर: 'माटीवाली' कहानी के माध्यम से लेखक उन लाखों लोगों की समस्या की ओर ध्यान दिलाते हैं जिनके पास न तो रहने के लिए अपनी जगह होती है और न ही पेट भरने के लिए पर्याप्त भोजन। ऐसे वंचित लोगों के लिए सरकार को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए:
* संवेदनशील पुनर्वास योजनाएँ: विस्थापितों की समस्या को संवेदनशीलता के साथ समझना चाहिए। उनके पुनर्वास के लिए केवल सरकारी कागज़ी कार्रवाई ही नहीं, बल्कि उनके स्वास्थ्य, भोजन और स्वच्छ पेयजल की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए।
* शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ: गरीब बच्चों के लिए स्वास्थ्य जाँच, टीकाकरण और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि वे बेहतर भविष्य बना सकें।
* खाद्य सुरक्षा और रोज़गार: पेट भरने के लिए उन्हें न्यूनतम दरों पर अनाज उपलब्ध कराना चाहिए। साथ ही, निर्धारित दरों पर रोज़गार के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। यह सब सरकार की कार्यप्रणाली में शामिल होना चाहिए।
* बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच: गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को गैस चूल्हा जैसी बुनियादी सुविधाएँ न्यूनतम मूल्य पर या मुफ्त में उपलब्ध करानी चाहिए, जैसा कि विभिन्न योजनाओं के तहत किया जा रहा है।
* स्वास्थ्य बीमा और चिकित्सा सहायता: गरीब जनता के स्वास्थ्य के लिए सभी सरकारी अस्पतालों में सरकार द्वारा आयुष्मान कार्ड जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिससे उन्हें मुफ्त या सस्ते इलाज की सुविधा मिल सके।
निष्कर्ष: सरकार को ऐसी अनेक योजनाएं चलानी चाहिए जो इन लोगों को गरिमापूर्ण जीवन जीने में मदद करें, उन्हें आश्रय, भोजन और आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करें।
प्रश्न 5. ऐसा क्यों होता जा रहा है कि आजकल पीतल, काँसे, एल्यूमीनियम के बर्तनों के बजाय घरों में ज़्यादातर काँच, चीनी मिट्टी, मेलामाइन और प्लास्टिक से बने बर्तनों का इस्तेमाल होने लगा है? स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं रोज़गार आदि की दृष्टि से इसके नुकसान व फायदों पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर: समय के साथ मनुष्य की रुचियों और जीवनशैली में तेज़ी से बदलाव आया है। आज के फैशन और आधुनिकता के इस दौर में हमारी जीवनशैली बहुत प्रभावित हुई है, जिसके कुछ फायदे और कई नुकसान देखे जा सकते हैं। पारंपरिक धातुओं के बर्तनों की जगह अब काँच, चीनी मिट्टी, मेलामाइन और प्लास्टिक के बर्तनों का प्रचलन बढ़ गया है। आइए, इसके प्रभावों को स्वास्थ्य, पर्यावरण और रोज़गार के संदर्भ में देखें:
1. स्वास्थ्य: समय ने हमारे जीवन को तेजी से बदला है। आधुनिकता की दौड़ में हम अक्सर सुविधाजनक या आकर्षक दिखने वाली चीज़ों को अपनाते हुए लाभदायक और पारंपरिक चीज़ों को छोड़ते जा रहे हैं। हमारे पूर्वजों ने हमें पीतल, काँसे और एल्यूमीनियम के बर्तन विरासत में दिए थे, जो स्वास्थ्य के लिहाज़ से बहुत फायदेमंद माने जाते थे। हालांकि, अब उन बर्तनों का स्वरूप ही बदल गया है। आज प्लास्टिक, मेलामाइन, चीनी मिट्टी और काँच आदि से बने सस्ते और आकर्षक बर्तनों का इस्तेमाल बढ़ गया है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बिल्कुल भी ठीक नहीं हैं। इन धातुओं से बने बर्तनों में हानिकारक तत्व नहीं होते थे, जबकि प्लास्टिक और मेलामाइन जैसे पदार्थों से बने बर्तनों का अत्यधिक उपयोग नई-नई बीमारियों को न्योता दे रहा है। इनकी प्रयोग में सहजता और कम कीमत के कारण लोग इनका अधिक उपयोग कर रहे हैं, लेकिन दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों को अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
2. पर्यावरण: बदलते समय में हम यह भी भूलते जा रहे हैं कि हम अपने कृत्यों से लगातार पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं। प्लास्टिक का अपघटन (decompose) होना असंभव है, और यह सैकड़ों वर्षों तक पृथ्वी पर बना रहता है। हम यह जानते हुए भी अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने में उदासीन दिख रहे हैं। यदि पर्यावरण को उचित समय पर नहीं बचाया गया तो इसके गंभीर परिणाम हमें भुगतने पड़ सकते हैं। प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग हमें 'काल के गाल' तक ले आया है। इसके अति प्रयोग से कैंसर, दमा, आँखों की बीमारियाँ और अन्य गंभीर बीमारियाँ बढ़ रही हैं। साथ ही, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन, नाइट्रोजन (N2) जैसी गैसों की मात्रा का असंतुलन, स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों ही दृष्टियों से हानिकारक सिद्ध हो रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण मिट्टी, जल और वायु सभी को प्रदूषित कर रहा है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) का संतुलन बिगड़ रहा है।
3. रोज़गार: बढ़ती महँगाई और बेरोज़गारी हमारे सामने एक ज्वलंत समस्या बनकर खड़ी है। रोज़गार की दृष्टि से देखें तो प्लास्टिक और सिंथेटिक उत्पादों के निर्माण से लोगों को नए रोज़गार के अवसर तो मिल रहे हैं, लेकिन यह अक्सर पारंपरिक हस्तकलाओं और धातुओं से जुड़े उद्योगों में रोज़गार को प्रभावित कर रहा है। धातुओं के बर्तन बनाने वाले कारीगरों और छोटे कुटीर उद्योगों का काम घट गया है। इसके अलावा, प्लास्टिक के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण बहुत सी फैक्ट्रियों में काम कर रहे नवयुवक भले ही रोज़गार पा रहे हैं, परंतु अक्सर वे स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी जोखिमों के साथ समझौता कर रहे हैं। इन फैक्ट्रियों में काम करने की स्थितियाँ और प्लास्टिक के हानिकारक तत्वों के संपर्क में आने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।
संक्षेप में, आधुनिक बर्तनों का उपयोग सुविधा और दिखावे के लिए बढ़ा है, लेकिन यह हमारे स्वास्थ्य, पर्यावरण और पारंपरिक रोज़गार पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है, जिसकी कीमत हमें भविष्य में चुकानी पड़ सकती है।
प्रश्न 6. 'मृण शिल्प कला' अर्थात मिट्टी से कलाकृतियां बनाना-
(क) आप अपने आसपास इस तरह की कलाकृतियाँ कहाँ-कहाँ देखते हैं? तथा ये भी पता कीजिए कि इस कला की क्या-क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर: छत्तीसगढ़ कला और संस्कृति का एक अनूठा केंद्र है, जहाँ की मिट्टी ने कई ऐसी कलाकृतियाँ गढ़ी हैं जिन्होंने प्रदेश का नाम पूरे विश्व में रोशन किया है। यहाँ कला और संस्कृति का एक अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
देखने के स्थान:
छत्तीसगढ़ में मृण शिल्प कलाकृतियाँ विभिन्न स्थानों पर देखने को मिलती हैं, खासकर ग्रामीण और आदिवासी बहुल क्षेत्रों में। खैरागढ़, ललितपुर, सरगुजा, झड़ा, झारा, धसिया जैसे क्षेत्र इसके प्रमुख केंद्र हैं जहाँ मिट्टी से बनी कलाकृतियों का अद्भुत संग्रह देखा जा सकता है। इसके अलावा, छत्तीसगढ़ हाट और राज्योत्सव जैसे आयोजनों में भी मिट्टी की कलाकृतियाँ बड़ी मात्रा में प्रदर्शित की जाती हैं। मिट्टी से बने बर्तन और अनेक लोककलाएँ यहाँ की लोकसंस्कृति का अभिन्न अंग हैं और ये देश-विदेश में अपनी पहचान बना रही हैं।
इस कला की विशेषताएँ:
* प्राकृतिक और स्थानीय सामग्री: इस कला में मुख्य रूप से स्थानीय मिट्टी का उपयोग होता है, जो इसे पर्यावरण के अनुकूल बनाती है।
* सांस्कृतिक और पारंपरिक जुड़ाव: मृण शिल्प कला छत्तीसगढ़ की गहरी सांस्कृतिक जड़ों और परंपराओं को दर्शाती है। यह अक्सर देवी-देवताओं, लोककथाओं और दैनिक जीवन से संबंधित होती है।
* कलात्मक सौंदर्य और विविधता: मिट्टी से विभिन्न प्रकार की कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं, जिनमें मूर्तियाँ, खिलौने, सजावटी वस्तुएँ, दैनिक उपयोग के बर्तन और धार्मिक प्रतीक शामिल हैं। इनमें रंगों और आकृतियों की अद्भुत विविधता देखने को मिलती है।
* कारीगरों का कौशल: इस कला में अत्यधिक कौशल और धैर्य की आवश्यकता होती है। यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती है, जिससे स्थानीय कारीगरों की कला जीवित रहती है।
* पर्यावरण-मित्रता: प्लास्टिक या अन्य हानिकारक सामग्रियों के विपरीत, मिट्टी से बनी कलाकृतियाँ पर्यावरण के लिए सुरक्षित होती हैं और आसानी से प्राकृतिक रूप से विघटित हो जाती हैं।
यह कला न केवल एक शिल्प है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की पहचान और विरासत का भी प्रतीक है।
(ख) आप अपने शहर, राज्य के कुछ ऐसे कलाकारों के नाम बताइए जिन्होंने मृणशिल्प कला के क्षेत्र में प्रदेश को पहचान दिलाई हो।
उत्तर: छत्तीसगढ़ अंचल लोककलाओं का गढ़ माना जाता है, और यहाँ के शिल्पकारों ने राज्य की कला को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कुछ प्रमुख कलाकार जिन्होंने मृणशिल्प कला (विशेषकर मिट्टी और धातु-मोम आधारित कला) के क्षेत्र में प्रदेश को पहचान दिलाई है, वे निम्नलिखित हैं:
* जयदेव बघेल: इन्हें 'घड़वा कला' (धातु और मोम से बनी कला) को दुनिया में पहचान दिलाने वाले कलाकार के रूप में जाना जाता है। जयदेव बघेल को 1976 में मध्य प्रदेश राज्य सम्मान मिला था। उन्होंने इस कला को राष्ट्रीय पुरस्कारों और अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों के माध्यम से ख्याति दिलाई। 1977 में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार और 1978 में एक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में इस कला को प्रदर्शित किया गया, जिससे इसे वैश्विक पहचान मिली। 1982 में इंदिरा गांधी ने उन्हें ईश्वर सम्मान से नवाजा था।
* शिब्बू मुखर्जी: यह एक अंतर्राष्ट्रीय कलाकार हैं जिन्होंने कोंडागाँव में रहकर इस कला का प्रशिक्षण प्राप्त किया और इसे आगे बढ़ाया।
* अनिदिता दत्ता: ये भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए हैं, जिससे इस कला को वैश्विक मंच पर पहचान मिली।
इन कलाकारों की निपुणता और समर्पण के माध्यम से छत्तीसगढ़ की मृणशिल्प कला, विशेषकर घड़वा, ढोकरा और बेलमेटल कला, पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुई है। ये कलाकार उन 'बीजों' के समान हैं जो बाद में इस कला के क्षेत्र में एक बड़ी पहचान बनकर उभरे, और उनके प्रयासों से ही यह कला जीवित है और फल-फूल रही है।
भाषा के बारे में —
प्रश्न 1. 'ई', 'इन' और 'आइन' प्रत्ययों का इस्तेमाल प्रायः स्त्रीलिंग शब्द बनाने के लिए किया जाता है। निम्न उदाहरणों को समझाते हुए तालिका में निम्न प्रत्ययों से बने अन्य शब्द लिखिए-
उत्तर: 'ई', 'इन' और 'आइन' प्रत्यय हिंदी व्याकरण में शब्दों को स्त्रीलिंग में बदलने के लिए उपयोग किए जाते हैं। ये प्रत्यय मूल शब्द के अंत में जुड़कर उसके लिंग में परिवर्तन करते हैं।
उदाहरण तालिका:
प्रत्यय | मूल शब्द (पुल्लिंग) | स्त्रीलिंग शब्द |
---|---|---|
'ई' प्रत्यय | नकल | नकली |
लकड़ | लकड़ी | |
पगड़ | पगड़ी | |
सगड़ | सगड़ी | |
तगड़ | तगड़ी | |
'इन' प्रत्यय | लुहार | लुहारिन |
पुजारी | पुजारिन | |
भिखारी | भिखारिन | |
माली | मालिन | |
बाघ | बाघिन | |
कहार | कहारिन | |
नाना | नातिन | |
सुहागा | सुहागिन | |
'आइन' प्रत्यय | पंडित | पंडिताइन |
ठाकुर | ठकुराइन | |
लाला | लालाइन | |
मिश्रा | मिशराइन | |
बनिया | बनियाइन |
नोट: 'मछली', 'कमली', 'नकली', 'अगली', 'लकड़ी', 'सगड़ी', 'तगड़ी', 'पगड़ी' में से 'मछली', 'कमली', 'अगली' स्वयं स्त्रीलिंग शब्द हैं या विशेषण हैं। 'नकली', 'लकड़ी', 'सगड़ी', 'तगड़ी', 'पगड़ी' में 'ई' प्रत्यय सही हैं। 'नातिन' भी 'नाना' का स्त्रीलिंग रूप हो सकता है।
प्रश्न 2. पाठ में आए निम्नलिखित मुहावरे के अर्थ लिखते हुए अपने वाक्य में प्रयोग कीजिए
उत्तर:–(क) दिल गवाही नहीं देता।
* अर्थ: मन किसी काम को करने की अनुमति नहीं देता, या किसी बात पर विश्वास नहीं करता।
* वाक्य प्रयोग: मुझे पता है कि वह झूठ बोल रहा है, मेरा दिल गवाही नहीं देता कि उस पर विश्वास करूँ।
(ख) मन मसोसकर रह जाना।
* अर्थ: अपनी इच्छा पूरी न होने पर दुखी और निराश होकर चुप रह जाना।
* वाक्य प्रयोग: जब उसे पता चला कि वह पिकनिक पर नहीं जा पाएगा, तो वह मन मसोसकर रह गया।
(ग) कातर नज़रों से देखना।
* अर्थ: भय या लाचारी के कारण दीन-हीन दृष्टि से देखना।
* वाक्य प्रयोग: भूख से बिलबिलाता बच्चा अपनी माँ को कातर नज़रों से देख रहा था।
(घ) चेहरा खिल उठना।
* अर्थ: अत्यधिक प्रसन्न होना, खुशी से मुख पर चमक आ जाना।
* वाक्य प्रयोग: परीक्षा में अच्छे अंक आने पर उसका चेहरा खिल उठा।
(ङ) दिमाग चकराने लगना।
* अर्थ: असमंजस में पड़ जाना, कुछ समझ में न आना, या बहुत अधिक सोचने के कारण भ्रमित हो जाना।
* वाक्य प्रयोग: इतनी सारी जानकारी एक साथ सुनकर मेरा दिमाग चकराने लगा।
प्रश्न 3. (क) निम्नलिखित तीनों वाक्यों को ध्यान से पढ़िए-
(अ) मिट्टी से भरा एक कंटेनर।
(ब) उस काम को करने वाली वह अकेली है।
(स) उसका प्रतिद्वंद्वी कोई नहीं।
आप पाएँगे कि इनके पढ़ने मात्र से ही इनका (प्रचलित) अर्थ आसानी से समझ में आता है। इसे शब्द की अभिधा शक्ति के नाम से जाना जाता है।
(ख) नीचे दिए गए इन वाक्यों को भी पढ़िए -
(अ) भूख तो अपने में एक साग होती है।
(ब) वह अपनी 'माटी को छोड़कर जा चुका था।
(स) गरीब आदमी का 'श्मशान' नहीं उजड़ना चाहिए।
उपरोक्त तीनों वाक्यों में साग, माटी और श्मशान से तात्पर्य क्रमशः खाद्य सामग्री, पंचतत्त्व से बने शरीर और 'घर' से है। इस प्रकार इन वाक्यों को पढ़कर उनके अर्थ पर यदि हम विचार करें तो पाते हैं कि वाक्य के वाच्यार्थ या मुख्यार्थ से भिन्न अन्य अर्थ (लक्ष्यार्थ) प्रकट होते हैं। इसे 'लक्षणा' शक्ति के नाम से जाना जाता है। सहपाठियों के साथ बैठकर अभिधा और लक्षणा शक्ति के पाँच - पाँच वाक्यों को पाठ्यपुस्तक से ढूँढकर लिखिए एवं स्वयं भी रचना कीजिए।
उत्तर: जैसा कि प्रश्न में बताया गया है, शब्दों के अर्थ को समझने के लिए विभिन्न शक्तियाँ होती हैं। इनमें से प्रमुख अभिधा और लक्षणा शब्द शक्तियाँ हैं।
अभिधा शक्ति:
यह वह शब्द शक्ति है जिससे किसी शब्द का सीधा, प्रचलित या मुख्य अर्थ आसानी से समझ में आ जाता है। यह शब्द की प्रथम और मूलभूत शक्ति है।
उदाहरण:
* मुश्किलों से भरा था उसका जीवन।
* माटाखान तो मेरी रोजी है साहब।
* घबराई हुई माटी वाली ने उसे छूकर देखा।
* शहर में पानी भरने लगा है।
* उसके जीवन का रास्ता बहुत कठिन था।
लक्षणा शक्ति:
यह वह शब्द शक्ति है जहाँ शब्द का सीधा या मुख्य अर्थ ग्रहण न करके, उससे संबंधित किसी अन्य अर्थ का बोध होता है। इसमें शब्द अपने लक्ष्यार्थ को प्रकट करता है।
उदाहरण:
* भूख मीठी की भोजन मीठा? (यहाँ 'भूख मीठी' का अर्थ भूख के कारण भोजन का स्वादिष्ट लगना है)
* वह साक्षात् दुर्गा का अवतार है। (यहाँ 'दुर्गा का अवतार' का अर्थ बहुत शक्तिशाली और पराक्रमी होना है)
* काल का गाल देखने की आवश्यकता नहीं होती। (यहाँ 'काल का गाल' का अर्थ मृत्यु के मुँह में जाना है)
* गरीबों के लिए सब दिन एक समान होते हैं।
* वह बाज़ारों के सामने हिमालय की तरह खड़ा रहा। (यहाँ 'हिमालय की तरह खड़ा रहा' का अर्थ अडिग और अविचल खड़ा रहा है)
योग्यता विस्तार —
प्रश्न 1. अपने आस-पास रहने वाले किसी ऐसे व्यक्ति अथवा कलाकार से मिलिए जो मिट्टी के बर्तन या मूर्तियाँ आदि बनाने का कार्य करता है। उससे साक्षात्कार करके निम्न बिंदुओं के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए -
* वे लोग कच्ची सामग्री कहाँ से जुटाते हैं?
* कलाकृति / बर्तन बनाने से पूर्व मिट्टी तैयार करने की क्या प्रक्रिया अपनाते हैं?
* एक कलाकृति तैयार करने की पूरी प्रक्रिया (बनाना, पकाना, रंगना इत्यादि) क्या होती है?
* निर्मित सामग्री को वे कहाँ-कहाँ बेचते हैं?
* इस व्यवसाय से प्राप्त आय, क्या उनके जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त है या नहीं?
* उन्हें किस-किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:– एक कुम्हार से साक्षात्कार के आधार पर प्राप्त जानकारी निम्नलिखित है:
(i) कच्ची सामग्री (मिट्टी) कहाँ से जुटाते हैं?
कुम्हार लोग मिट्टी जुटाने के लिए तालाबों जो थोड़े सूखे हुए हों, तथा नदी के किनारों से मिट्टी एकत्र करते हैं, जिसका उपयोग वे बर्तन, मूर्तियाँ आदि बनाने के लिए करते हैं।
(ii) कलाकृति / बर्तन बनाने से पूर्व मिट्टी तैयार करने की प्रक्रिया?
मिट्टी को पहले पीसकर उसका बारीक पाउडर बनाया जाता है। फिर इस पाउडर से कंकड़, पत्थर जैसी अशुद्धियों को निकाला जाता है। इसके बाद, उसमें पानी डालकर अच्छी तरह से गूँथा जाता है। कुछ कुम्हार इसमें कॉटन या रुई भी मिलाते हैं ताकि मिट्टी को मजबूती और लचीलापन मिल सके। इस प्रकार बर्तन बनाने के लिए मिट्टी को तैयार किया जाता है।
(iii) एक कलाकृति तैयार करने की पूरी प्रक्रिया:
कलाकृति तैयार करने के लिए निम्न प्रक्रियाओं को क्रमबद्ध तरीके से पूरा किया जाता है:
* मिट्टी को नरम करके तैयार करना: सबसे पहले मिट्टी को अच्छी तरह गूँथकर नरम किया जाता है ताकि वह काम करने योग्य हो जाए।
* मिट्टी को चाक पर रखकर उससे कलाकृति का निर्माण करना: नरम मिट्टी को कुम्हार के चाक पर रखा जाता है और उसे घुमाकर वांछित आकार की कलाकृति या बर्तन बनाए जाते हैं।
* बनी हुई कच्ची कलाकृति को धूप में सुखाना: चाक पर बनी कच्ची कलाकृति को सीधे धूप में रखा जाता है ताकि वह सूख जाए और अपनी प्रारंभिक कठोरता प्राप्त कर ले।
* सूखी हुई कलाकृति को आग में पकाना: सूखने के बाद, इन कलाकृतियों को भट्ठी या आग में पकाया जाता है। इससे वे मजबूत और टिकाऊ बनती हैं।
* पकी हुई कलाकृति पर रंगों द्वारा सजावट कर उन्हें सुखाकर तैयार किया जाता है: पकाने के बाद, कलाकृतियों को ठंडा किया जाता है और फिर उन पर विभिन्न रंगों और डिज़ाइनों से सजावट की जाती है। अंत में, रंग सूखने पर वे बिक्री के लिए तैयार हो जाती हैं।
(iv) निर्मित सामग्री को कहाँ-कहाँ बेचते हैं?
तैयार मिट्टी की सामग्री का कुछ हिस्सा स्थानीय स्तर पर ही बेचा जाता है। जो बाकी बची हुई कलाकृतियाँ होती हैं, उन्हें दुकानों पर या ऑर्डर के आधार पर बाहर भेजकर विक्रय किया जाता है। विशेष अवसरों और त्योहारों पर इनकी बिक्री बढ़ जाती है।
(v) इस व्यवसाय से प्राप्त आय और जीवन निर्वाह:
कुम्हारों का व्यवसाय मुख्य रूप से त्योहारों के समय पर निर्भर करता है। त्योहारों जैसे दिवाली, छठ पूजा आदि के दौरान उनकी आमदनी ठीक रहती है। परंतु पूरे साल उनकी आमदनी उनके जीवन यापन के लिए पर्याप्त नहीं होती है। इस कारण उनका जीवन कठिनाइयों से व्यतीत होता है।
(vi) कुम्हारों को किस-किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
आज कुम्हारों का जीवन बहुत कठिनाइयों से गुज़र रहा है। उन्हें सबसे पहले तो कच्चा माल (अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी) आसानी से उपलब्ध नहीं होता। साथ ही, आज के आधुनिक समय में मिट्टी के बर्तनों और कलाकृतियों का स्थान प्लास्टिक और धातुओं से बनी चीज़ों ने ले लिया है, जिससे उनके पारंपरिक व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इस कारण दिन-प्रतिदिन इनकी आर्थिक हालत दयनीय होती जा रही है।
प्रश्न 2. गंगा नदी को "भागीरथी" कहे जाने के पीछे जो प्रचलित पौराणिक कथा है, उसे अपने शिक्षक या बड़े से जानने का प्रयास कीजिए और लिखिए।
उत्तर - पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य वंश के राजा और भगवान श्री राम के पूर्वज भागीरथ के कठोर तप और त्याग के कारण ही गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा भागीरथ अपने पितरों का श्राद्ध और तर्पण करना चाहते थे, किन्तु उसके लिए गंगा नदी के जल का होना आवश्यक था। किन्तु उस समय गंगा नदी केवल स्वर्ग में ही बहती थी। उसे पृथ्वी पर लाने के लिए भागीरथ ने भगवान शिव, भगवान ब्रह्मा और विष्णु की कठोर तपस्या किया और उसके परिणाम स्वरूप गंगा जी का पृथ्वी पर अवतरण हुआ। गंगा नदी के आगमन की यही कथा प्रचलित है। इसके बाद गंगा जी को को भागीरथी नदी के नाम से भी जाना जाता है।
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कक्षा 10 हिंदी भाग 2.3 अपनी-अपनी बीमारी: | apni apni bimari (हरिशंकर परसाई) CBSE BOARD प्रश्न उत्तर