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कन्यादान | कक्षा 10 हिंदी पाठ | Kanyadaan Class 10 Hindi Poem Explanation & Questions

 

कन्यादान कविता कक्षा 10 हिंदी – व्याख्या, प्रश्न उत्तर और रचनात्मक लेखन | Kanyadaan Poem Summary, Question Answers, Class 10 Hindi


प्रश्न 1: इस कविता में किसके-किसके मध्य संवाद हो रहा है?

उत्तर: यह कविता मुख्य रूप से एक माँ और उसकी बेटी के बीच चल रहे भावनात्मक संवाद को दर्शाती है।

प्रश्न 2: लड़की को दान देते वक्त माँ को अंतिम पूँजी जैसा दुःख क्यों हो रहा है?

उत्तर: 'कन्यादान' नामक इस कविता में, कवि ने एक माँ के गहरे दर्द और भावनात्मक उथल-पुथल को बड़ी संवेदनशीलता से चित्रित किया है। जिस बेटी को माँ ने जन्म दिया, पाला-पोसा और अपना सर्वस्व माना, अब वह विवाह के बाद पराई होकर किसी और के घर जा रही है। माँ यह महसूस करती है कि उसकी बेटी, जो उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा थी, अब उससे दूर हो जाएगी। यह अलगाव उसे इस तरह का महसूस कराता है जैसे वह अपनी 'अंतिम पूँजी' या अपने जीवन की सबसे कीमती चीज़ को किसी और को सौंप रही है। यह उसकी गहरी व्यथा को दर्शाता है कि बेटी के चले जाने के बाद वह बिलकुल अकेली रह जाएगी, और यह भावना उसके दुःख को और भी बढ़ा देती है।



प्रश्न 3. "पानी में झाँककर कभी अपने चेहरे पर मत रीझना इस पंक्ति के माध्यम से माँ बेटी को क्या सीख देना चाहती है?

उत्तर: इस पंक्ति के माध्यम से माँ अपनी बेटी को विवाह के बाद नए घर में प्रवेश करते समय एक महत्वपूर्ण जीवनोपयोगी सीख देना चाहती है। माँ अपनी पुत्री को समझा रही है कि उसे केवल अपनी शारीरिक सुंदरता पर मोहित होकर नहीं रहना चाहिए। वह उसे आगाह करती है कि ससुराल में लोग उसकी सुंदरता की प्रशंसा कर सकते हैं, लेकिन उसे उस प्रशंसा में फँसकर अपनी पहचान या स्वाभिमान नहीं खोना चाहिए। इस सीख का गहरा अर्थ यह है कि बाहरी सुंदरता अस्थायी होती है और अक्सर महिलाएं अपनी सुंदरता की प्रशंसा में उलझकर या झूठी तारीफों से भ्रमित होकर उन बंधनों को स्वीकार कर लेती हैं जो उनके शोषण का कारण बन सकते हैं। माँ चाहती है कि उसकी बेटी आत्मनिर्भर और विवेकशील बने, ताकि वह किसी भी तरह के शोषण से बच सके और अपनी गरिमा बनाए रखे। यह सीख उसे बाहरी चमक के बजाय आंतरिक शक्ति और आत्म-मूल्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करती है।



प्रश्न 4. कविता में माँ के अनुभवों की पीड़ा किन-किन पंक्तियों में उभरकर आई है?

उत्तर: प्रस्तुत कविता में माँ के अनुभवों की पीड़ा निम्नलिखित पंक्तियों में स्पष्ट रूप से उभरकर आई है, जो उसकी बेटी के भविष्य और उसके अपने अकेलेपन को लेकर उसकी चिंता और दर्द को दर्शाती हैं:

 * "लड़की अभी सयानी नहीं थी, अभी इतनी भोली सरल थी कि उसे सुख का आभास तो होता था लेकिन दुःख बाँटना नहीं आता था।"

   * यह पंक्ति माँ की इस चिंता को दर्शाती है कि उसकी बेटी अभी पूरी तरह से दुनियादारी नहीं समझती और वह अभी भी बहुत भोली है, जिससे माँ को लगता है कि वह आने वाली मुश्किलों का सामना कैसे करेगी।

 * "पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की। कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की।"

   * यह पंक्ति बेटी की अनुभवहीनता और नासमझी को उजागर करती है, जिससे माँ के मन में उसकी सुरक्षा को लेकर डर पैदा होता है।

 * "माँ ने कहा पानी में झाँक कर अपने चेहरे पर मत रीझना। आग रोटी सेंकने के लिए है जलने के लिए नहीं।"

   * इन पंक्तियों में माँ अपनी बेटी को वैवाहिक जीवन की कठोर सच्चाइयों के प्रति सचेत करती है। वह उसे केवल बाहरी सुंदरता पर मोहित न होने और ससुराल में होने वाले संभावित शोषण या अत्याचार से बचने की सलाह देती है। यह माँ की उस पीड़ा को दर्शाता है कि उसे अपनी बेटी को ऐसे कड़वे सच सिखाने पड़ रहे हैं।

 * "वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन हैं स्त्री जीवन के।"

   * यह पंक्ति माँ के गहरे अनुभव और समझ को दर्शाती है कि भौतिक वस्तुएं (कपड़े और गहने) अक्सर स्त्रियों के लिए स्वतंत्रता में बाधक बन जाती हैं और उन्हें एक प्रकार के बंधन में बाँध देती हैं। यह माँ की उस पीड़ा को बताता है जो उसने स्वयं ऐसे बंधनों में महसूस की होगी।

 * "माँ ने कहा लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।"

   * यह पंक्ति माँ की सबसे बड़ी पीड़ा और चिंता को दर्शाती है। वह अपनी बेटी को स्त्री के गुणों को अपनाने के लिए कहती है, लेकिन साथ ही उसे समाज में स्त्री होने के कारण होने वाले शोषण या दुर्बलता को प्रदर्शित न करने की सलाह देती है। यह माँ के उस दर्द को बताता है कि उसे अपनी बेटी को इतनी मजबूत बनने के लिए कहना पड़ रहा है ताकि वह दुनिया की कठिनाइयों का सामना कर सके।



प्रश्न 5. "लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना" में किस प्रकार के आदर्शों को छोड़ने और किन-किन आदर्शों को अपनाने की बात कही गई है?

उत्तर: इस पंक्ति के माध्यम से माँ अपनी बेटी को स्त्रीत्व के परंपरागत और आधुनिक आदर्शों के बीच संतुलन बनाने की सीख दे रही है। यहाँ 'लड़की होना' का अर्थ है स्त्री सुलभ गुणों जैसे कोमलता, संवेदनशीलता, करुणा और ममता को अपनाना। ये वे आदर्श हैं जिन्हें माँ अपनी बेटी में देखना चाहती है।

दूसरी ओर, 'लड़की जैसी दिखाई मत देना' का अर्थ है उन रूढ़िवादी और नकारात्मक आदर्शों को त्यागना जो समाज ने सदियों से स्त्रियों पर थोप रखे हैं। इसका तात्पर्य यह है कि:

 * कमजोरी और अधीनता का त्याग: समाज अक्सर स्त्री की कोमलता को उसकी कमजोरी समझता है और उसे आसानी से दबाने या शोषण करने का प्रयास करता है। माँ चाहती है कि बेटी ऐसी कमजोरी न दिखाए।

 * दबाव में शोषण स्वीकार न करना: यह सीख देती है कि किसी भी दबाव या अत्याचार के आगे झुककर अपना शोषण न होने दें।

 * भावनात्मक रूप से अत्यधिक संवेदनशील न होना: माँ उसे इतनी भावुक न होने की सलाह देती है कि लोग उसकी भावनाओं का अनुचित लाभ उठा सकें।

संक्षेप में, माँ चाहती है कि उसकी बेटी अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाए और स्त्री के सकारात्मक गुणों को अपनाए, लेकिन साथ ही उसे अपने आत्म-सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा करना सिखाती है। वह उसे समाज द्वारा निर्धारित उन बंधनों और अपेक्षाओं को तोड़ने के लिए प्रेरित करती है जो स्त्री को कमजोर या अधीन बनाते हैं, ताकि वह विपरीत परिस्थितियों का सामना दृढ़ता से कर सके और किसी भी अन्याय की शिकार न हो।


प्रश्न 6. "पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की, कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की" से कवि का क्या अभिप्राय है?

उत्तर: इन पंक्तियों के माध्यम से कवि लड़की की उस छवि को प्रस्तुत करता है जो बेहद मासूम और सरल स्वभाव की है, और जिसे अभी दुनिया की कड़वी सच्चाइयों का कोई वास्तविक अनुभव नहीं है।

कवि का अभिप्राय है कि:

 * भोली-भाली और अनुभवहीनता: लड़की अभी तक एक ऐसी काल्पनिक दुनिया में जी रही है जहाँ उसे केवल सुख का आभास है, लेकिन उसने जीवन के गहरे दुखों और कठिनाइयों का अनुभव नहीं किया है। वह समाज की जटिलताओं और छल-कपट से पूरी तरह अनजान है।

 * सीमित दुनिया: उसकी दुनिया अभी केवल अपने माता-पिता और उनके दिए संस्कारों तक ही सीमित है। उसने हमेशा एक सुरक्षित और संरक्षित वातावरण में रहकर जीवन के उथल-पुथल भरे अनुभवों से दूरी बनाए रखी है।

 * अज्ञानता: उसे इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि बाहरी दुनिया कितनी बदल गई है और उसे दूसरों द्वारा दी जाने वाली पीड़ाओं या शोषण का कोई पूर्व अनुभव नहीं है। वह एक ऐसी 'पाठिका' के समान है जो केवल जीवन की कुछ आसान, 'लयबद्ध पंक्तियों' और 'धुंधले प्रकाश' में छिपी बातों को ही पढ़ पाई है। इसका मतलब है कि उसने जीवन के केवल सतही और सुखद पहलुओं को ही देखा है, जबकि गहरे और जटिल सत्य से वह अनभिज्ञ है।

यह पंक्ति माँ की चिंता को भी दर्शाती है कि उसकी इतनी भोली-भाली बेटी जब वास्तविक दुनिया का सामना करेगी, तो वह कैसे अपनी रक्षा कर पाएगी।


पाठ से आगे —



प्रश्न 7. कविता में एक माँ द्वारा अपनी बेटी को जिस तरह की सीख दी गई है, वह वर्तमान में कितनी प्रासंगिक और औचित्यपूर्ण है समूह में विचार-विमर्श कर लिखिए?

उत्तर: 'कन्यादान' कविता में माँ द्वारा अपनी बेटी को दी गई सीख वर्तमान समय में अत्यंत प्रासंगिक और औचित्यपूर्ण है। यह सीख केवल एक व्यक्तिगत संबंध तक सीमित न होकर, आज के समाज में हर बेटी के सशक्तिकरण के लिए एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करती है।

प्रासंगिकता और औचित्यपूर्णता के कारण:

 * समाज की कठोर वास्तविकता: आज भी हमारा समाज पूरी तरह से लैंगिक समानता को स्वीकार नहीं कर पाया है। कई जगहों पर स्त्रियों को आज भी शोषण, भेदभाव और अन्याय का सामना करना पड़ता है। ऐसे में माँ की यह सीख कि 'लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना' अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो उसे अपनी संवेदनशीलता बनाए रखते हुए भी कमजोर न दिखने का हौसला देती है।

 * आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन: माँ अपनी बेटी को विपरीत परिस्थितियों का निडरता से मुकाबला करने, आत्मनिर्भर बनने और अपने परिवार के लिए सहारा बनने की प्रेरणा देती है। यह सीख आज की हर महिला के लिए आवश्यक है ताकि वह किसी पर निर्भर न रहे और अपने निर्णय स्वयं ले सके।

 * रूढ़ियों से मुक्ति: 'वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन हैं' जैसी पंक्तियाँ यह दर्शाती हैं कि माँ अपनी बेटी को भौतिकवादी बंधनों से ऊपर उठकर आत्मिक स्वतंत्रता को महत्व देने की सीख दे रही है। यह आज भी प्रासंगिक है जब बाह्य दिखावा अक्सर स्त्रियों के लिए एक दबाव बन जाता है।

 * शिक्षा का महत्व: यद्यपि कविता में सीधे शिक्षा का उल्लेख नहीं है, लेकिन माँ की सीख का निहितार्थ यह भी है कि नारी शिक्षा परिवार और समाज के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। 'जब एक पुरुष शिक्षित होता है तो केवल एक आदमी शिक्षित होता है लेकिन एक स्त्री के शिक्षित होने से पूरी पीढ़ी शिक्षित होती है।' यह कथन माँ की दूरदर्शिता और नारी सशक्तिकरण की महत्ता को रेखांकित करता है।

 * भावनात्मक मजबूती: विवाह के समय बेटी को विदा करते हुए माँ का दर्द स्वाभाविक है, लेकिन इस दर्द के बावजूद वह अपनी बेटी को भावनात्मक रूप से मजबूत बनने की सीख देती है। यह सीख उसे यह समझने में मदद करती है कि जीवन में आने वाले उतार-चढ़ावों का सामना कैसे करना है।

निष्कर्षतः, 'कन्यादान' कविता में माँ द्वारा अपनी बेटी को दी गई सीख केवल वैवाहिक जीवन के लिए ही नहीं, बल्कि एक महिला को समाज में सशक्त, आत्मविश्वासी और संघर्षशील बनाने के लिए एक कालजयी मार्गदर्शक है। यह सीख आज भी हर बेटी के लिए उतनी ही आवश्यक और प्रासंगिक है जितनी यह उस कविता के समय रही होगी।




प्रश्न 2. विवाह में कन्या के दान की परंपरा चली आ रही है। क्या वास्तव में कन्या 'दान' की वस्तु होती है? कक्षा में चर्चा कर प्राप्त विचार को लिखिए।

उत्तर: विवाह में कन्यादान की परंपरा सदियों से चली आ रही है, लेकिन यह एक विचारणीय प्रश्न है कि क्या वास्तव में कन्या 'दान' की कोई वस्तु होती है। इस विषय पर गहन चर्चा करने पर यह स्पष्ट होता है कि कन्या किसी भी प्रकार से दान की वस्तु नहीं है।

कन्यादान की परंपरा पर विचार:

 * कन्या दान की वस्तु नहीं, भावनात्मक संबंध: कन्या माता-पिता के लिए कोई निर्जीव वस्तु या संपत्ति नहीं होती जिसे दान किया जा सके। बेटियों का संबंध उनके माता-पिता से गहरे प्रेम, भावनाओं और त्याग पर आधारित होता है। दान वस्तुओं का होता है, व्यक्तियों का नहीं। बेटियों के अंदर अपनी भावनाएँ, इच्छाएँ और एक स्वतंत्र अस्तित्व होता है।

 * मानवीय गरिमा का सम्मान: 'कन्यादान' शब्द का शाब्दिक अर्थ भले ही 'दान' हो, लेकिन आधुनिक संदर्भ में इसका अर्थ अपनी बेटी को किसी दूसरे परिवार को सौंपना नहीं है, बल्कि उसे एक नए जीवन और रिश्ते की शुरुआत के लिए विदा करना है। यह उसके सम्मान और गरिमा के साथ जुड़ा है, न कि किसी वस्तु के हस्तांतरण के साथ।

 * रिश्तों का विस्तार, त्याग नहीं: विवाह के पश्चात बेटी का संबंध नए लोगों और एक नए परिवार से जुड़ता है, जिससे उसके रिश्तों का दायरा बढ़ता है। यह एक रिश्ता छोड़ कर दूसरे को अपनाने का मामला नहीं है, बल्कि रिश्तों में विस्तार का मामला है। पुराने रिश्तों (माता-पिता से) को पूरी तरह से छोड़ देना या उनका त्याग करना किसी भी बेटी के लिए दुःखदायक होता है और ऐसा करना उचित भी नहीं है।

 * बदलता सामाजिक परिप्रेक्ष्य: आज के प्रगतिशील समाज में बेटियों को बेटों के समान ही माना जाता है। वे शिक्षित हैं, आत्मनिर्भर हैं और समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। ऐसे में उन्हें 'दान की वस्तु' मानना उनके व्यक्तित्व और स्वतंत्रता का अनादर है।


भाषा के बारे में —


प्रश्न 1. समाज में विवाह से जुड़ी सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, उम्र, रंग-रूप आदि आधारों पर तमाम रूढ़िवादी भ्रांतियाँ एवं व्यवहार आज भी प्रचलन में हैं। इन्हीं मुद्दों को रेखांकित करते हुए एक आलेख तैयार कीजिए।

उत्तर: भारतीय समाज में विवाह एक पवित्र बंधन माना जाता है, परंतु दुर्भाग्य से इससे जुड़ी कई रूढ़िवादी भ्रांतियाँ और व्यवहार आज भी गहरे तक अपनी जड़ें जमाए हुए हैं। ये भ्रांतियाँ अक्सर सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, उम्र, और रंग-रूप जैसे आधारों पर पनपती हैं, जो एक स्वस्थ समाज के निर्माण में बाधा बनती हैं। इन मुद्दों को रेखांकित करते हुए एक विश्लेषण प्रस्तुत है:

विवाह से जुड़ी प्रमुख रूढ़िवादी भ्रांतियाँ और व्यवहार:

 * सामाजिक और आर्थिक दबाव: विवाह को अक्सर एक सामाजिक स्थिति या आर्थिक लेन-देन के रूप में देखा जाता है। दहेज प्रथा, उच्च वर्ग में विवाह का आग्रह, और आर्थिक स्थिति के आधार पर रिश्ते तय करना आज भी आम है। यह वर-वधू की योग्यता और आपसी समझ के बजाय बाहरी कारकों को अधिक महत्व देता है।

 * धार्मिक और जातिगत कट्टरता: अंतर-धार्मिक या अंतर-जातीय विवाह को आज भी कई स्थानों पर स्वीकार नहीं किया जाता। धार्मिक और जातिगत शुद्धता के नाम पर कई योग्य रिश्ते टूट जाते हैं, जिससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और प्रेम का अनादर होता है।

 * उम्र और रंग-रूप का महत्व: लड़के के लिए कम उम्र की लड़की और गोरे रंग की वधू की तलाश एक आम मानसिकता है। यह रंग-भेद और उम्र-भेद को बढ़ावा देता है, और व्यक्ति के गुणों के बजाय उसके शारीरिक बनावट को प्राथमिकता देता है। अक्सर लड़कियों पर कम उम्र में शादी का दबाव बनाया जाता है, जिससे उनकी शिक्षा और करियर प्रभावित होते हैं।

 * लड़की की शिक्षा और करियर को कम आंकना: आज भी कई परिवार लड़की की शिक्षा या करियर को विवाह के लिए बाधा मानते हैं। यह सोच कि 'लड़की को तो घर ही संभालना है' उसकी क्षमताओं और आकांक्षाओं को दबा देती है।

आवश्यक बदलाव और समाधान:

 * भेदभाव को खत्म करना: समाज में फैली इस भ्रांति को दूर करना होगा कि पुरुष-स्त्री के बीच कोई असमानता है। दोनों को समान शिक्षा और अवसर का अधिकार मिलना चाहिए।

 * शिक्षा का महत्व: शिक्षा को सर्वोपरि मानना चाहिए। यह समझना होगा कि यदि एक पुरुष शिक्षित होता है तो यह एक व्यक्ति को शिक्षित करता है, परंतु जब एक स्त्री शिक्षित होती है तो वह पूरी पीढ़ी को शिक्षित करती है। इस सोच को समाज के हर वर्ग तक पहुँचाना होगा।

 * धार्मिक संस्कारों में पुरुषों की भागीदारी: धार्मिक संस्कार और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ सिर्फ स्त्रियों की ही नहीं, पुरुषों की भी हैं। पुरुषों को भी इन जिम्मेदारियों और संस्कारों के महत्व से अवगत कराना आवश्यक है।

 * योग्य साथी का चयन: समाज के युवा वर्ग को यह जागरूक करना होगा कि वे रूप, रंग और धन के लोभ में विवाह प्रस्ताव को मानने के बजाय एक शिक्षित और समझदार जीवन साथी का चुनाव करें। इससे समाज को एक सशक्त संदेश मिलेगा और सभी इस दिशा में अग्रसर होंगे।

 * समानता और सम्मान: एक ऐसे समाज का निर्माण करना जहाँ विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन हो, जो आपसी सम्मान, प्रेम और समझ पर आधारित हो, न कि रूढ़िवादी धारणाओं पर।

यह बदलाव हमें आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर सर्वोच्च स्थान प्रदान कराएगा और हमारी भारतीय संस्कृति का डंका पूरे संसार में सुनाई देगा, जो वास्तविक अर्थों में प्रगतिशील और समतावादी हो।



प्रश्न 2. एक ऐसी कविता की रचना कीजिए जिसमें आपकी चाहत, महत्वाकांक्षा परिलक्षित (मुखरित) होती हो।

उत्तर:  मेरी उड़ान


कँपती नहीं मैं अब कभी,

देखकर राहों की मुश्किल।

सपनों के पर हैं मेरे पास,

पंख फैलाऊँ मैं हर पल।

कहती थी दुनिया कभी,

तू तो है बस इक छोटी परी।

पर मैंने सुना मन की पुकार,

मेरी उड़ान तो है असीमित तरी।

किताबों में खोई, ज्ञान में डूबी,

नित नए क्षितिज तलाशूँ मैं।

रूढ़ियों की बेड़ियाँ तोड़कर,

नारी शक्ति का परचम फहराऊँ मैं।

धन की नहीं, यश की नहीं चाह,

बस चाह है, हो मेरी पहचान।

सेवा करूँ समाज की, मिटाऊँ अंधकार,

बने हर जीवन अब सम्मान।

नारी हूँ, पर कमजोर नहीं,

मेरी हर साँस में है विश्वास।

आकाश छूने की है महत्वाकांक्षा,

पूरी होगी मेरी हर आस।




प्रश्न 3. अपनी बड़ी बहन के विवाह की तैयारियों संबंधी जानकारी देते हुए अपनी सहेली / दोस्त को पत्र लिखिए।


उत्तर:


प्रिय मित्र / सहेली सजल,

स्नेहिल प्रणाम!

आशा है तुम और तुम्हारा परिवार कुशल होंगे। मैं भी यहाँ सकुशल हूँ और तुम्हें यह बताते हुए बहुत हर्ष का अनुभव हो रहा है कि मेरी बड़ी बहन का विवाह सुनिश्चित हो गया है। विवाह की तैयारियाँ भी पूरे जोर-शोर से शुरू हो गई हैं।

                 उसका विवाह आगामी 1 जून को होना सुनिश्चित हुआ है, और इसी कारण आजकल मेरा पूरा परिवार व्यस्त है। मेरी प्यारी बहन का विवाह है, इसलिए हम इसे बड़े ही धूम-धाम से मनाना चाहते हैं। इस शुभ अवसर पर सभी मित्रों और सगे-संबंधियों की उपस्थिति अनिवार्य है। मुझे उम्मीद है तुम इस विवाह का हिस्सा बनने के लिए अपनी यात्रा की योजना बना सकोगी।

विवाह से लगभग दस दिन पहले से ही घर में रौनक शुरू हो जाएगी। मम्मी और पापा खरीदारी में व्यस्त हैं, जहाँ मेरी बहन अपने कपड़ों और गहनों का चयन कर रही है। घर में रिश्तेदारों का आना-जाना शुरू हो गया है, जिससे पूरे घर का माहौल उत्सवपूर्ण हो गया है। मैं भी अपनी तरफ से छोटी-मोटी तैयारियों में हाथ बंटा रही हूँ, जैसे कि मेहमानों की लिस्ट बनाना और मिठाइयों का ऑर्डर देना।

तुमसे मिलकर सारी बातें विस्तार से बताऊँगी। मुझे तुम्हारी राय और मदद की भी बहुत जरूरत पड़ेगी, खासकर सजावट और अन्य छोटी-मोटी चीज़ों में। आशा है तुम जल्द ही आओगी और इस खुशी के अवसर पर हमारे साथ शामिल हो पाओगी।

अपने माता-पिता को मेरा प्रणाम कहना। तुम्हारे आगमन की प्रतीक्षा रहेगी।

तुम्हारी सहेली,

मिथिला

28 जून 2025



प्रश्न 4. मुख्यमंत्री कन्यादान योजना का लाभ उठाने हेतु मुख्यमंत्री कार्यालय को आवेदन पत्र लिखिए।

उत्तर:

सेवा में,

माननीय मुख्यमंत्री महोदय,

मुख्यमंत्री कार्यालय,

छत्तीसगढ़ शासन,

रायपुर (छ.ग.)।

प्रेषक:

रामधारी सिंह AB | CD | EP

कोंडागाँव, रायपुर (छ.ग.)

दिनांक: 28 जून 2025

विषय: मुख्यमंत्री कन्यादान योजना से लाभ प्राप्ति हेतु।

महोदय,

          सविनय निवेदन है कि मैं रामधारी सिंह, कोंडागाँव गाँव का निवासी हूँ। मैं एक अत्यन्त आय वाला श्रमिक हूँ और मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत सामान्य है। मेरी पुत्री विवाह योग्य हो गई है, परंतु आर्थिक तंगी के कारण उसका विवाह करने में मैं स्वयं को असमर्थ पा रहा हूँ। हाल ही में मुझे मुख्यमंत्री कन्यादान योजना का पता चला और मुझे यह जानकर बड़ी राहत मिली कि मेरी इस गंभीर समस्या का समाधान इस योजना के माध्यम से हो सकता है।

मैंने योजना के दिशा-निर्देशों के अनुसार अपनी आय व आयु प्रमाण पत्र इस निवेदन के साथ संलग्न कर दिए हैं तथा औपचारिक पंजीकरण की प्रक्रिया भी पूरी कर ली है। मेरी पुत्री का विवाह अगले माह में निर्धारित है और मुझे इस शुभ कार्य को संपन्न करने के लिए आपकी सहायता की नितांत आवश्यकता है।

                 अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि आप मेरी स्थिति को ध्यान में रखते हुए, मुझे इस योजना का लाभ प्रदान करने की कृपा करें ताकि मैं अपनी पुत्री का विवाह सम्मानपूर्वक संपन्न करा सकूँ। आपकी इस कृपा के लिए मैं और मेरा परिवार सदैव आपका आभारी रहेगा।

सधन्यवाद।

भवदीय,

रामधारी सिंह

संलग्नक:

 * आय प्रमाण पत्र

 * आयु प्रमाण पत्र (पुत्री का)

 * निवास प्रमाण पत्र

 * विवाह निमंत्रण पत्र (यदि उपलब्ध हो)

 * आधार कार्ड की प्रतिलिपि



योग्यता विस्तार 


प्रश्न 1. "बेटी-बचाओ, बेटी बढ़ाओ", "नारी शिक्षा", "कन्या-भ्रूण हत्या" आदि विषयों पर चर्चा कर चार्ट पेपर पर लेखन कीजिए।


उत्तर:– यह निर्देश छात्रों को इन विषयों पर चर्चा करने और फिर एक चार्ट पेपर पर अपने विचार लिखने के लिए कहा गया है।

इसका मतलब है कि यह एक ऐसा कार्य है जिसे आपको स्वयं करना होगा, जिसमें आपकी अपनी समझ, विचार और रचनात्मकता शामिल होगी।

मै आपको कुछ सुझाव दिया हूँ 

मूल निर्देश आपको "बेटी-बचाओ, बेटी बढ़ाओ", "नारी शिक्षा", और "कन्या-भ्रूण हत्या" जैसे विषयों पर चर्चा करने और फिर चार्ट पेपर पर लिखने के लिए कह रहा है। 

मैं आपको इन विषयों पर जानकारी और कुछ महत्वपूर्ण बिंदु प्रदान किया हूँ, जिससे आपको अपना चार्ट पेपर तैयार करने में मदद मिलेगी।

चर्चा के लिए विषय और चार्ट पेपर पर लिखने के लिए महत्वपूर्ण बिंदु:

1. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (Save the Daughter, Educate the Daughter):

 * उद्देश्य: यह भारत सरकार का एक प्रमुख अभियान है जिसका उद्देश्य घटते बाल लिंगानुपात को संबोधित करना, लड़कियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और उनकी शिक्षा को बढ़ावा देना है।

 * महत्व:

   * लिंग समानता स्थापित करना।

   * लड़कियों को समाज का एक सक्रिय           और उत्पादक सदस्य बनाना।

   * महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक         कदम।

   * समाज के विकास के लिए लड़कियों की       शिक्षा और सुरक्षा आवश्यक है।

 * आप क्या लिख सकते हैं: इस अभियान के लक्ष्य, इससे होने वाले सामाजिक लाभ, और आप कैसे इसका समर्थन कर सकते हैं। आप कुछ स्लोगन भी लिख सकते हैं जैसे "बेटी है अनमोल, जीवन का आधार", "पढ़ी लिखी बेटी, रोशनी घर की"।

2. नारी शिक्षा (Women Education):

 * महत्व:

   * व्यक्तिगत विकास: शिक्षा महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाती है, जिससे वे अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होती हैं।

   * पारिवारिक कल्याण: एक शिक्षित माँ अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य दे सकती है, जिससे परिवार का समग्र विकास होता है।

   * सामाजिक विकास: शिक्षित महिलाएँ समाज के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं, चाहे वह आर्थिक क्षेत्र हो, राजनीतिक हो या सामाजिक।

   * रूढ़िवादिता का खंडन: शिक्षा महिलाओं को पारंपरिक रूढ़ियों से बाहर निकलने और अपनी क्षमता को पूरा करने में मदद करती है।

 * आप क्या लिख सकते हैं: नारी शिक्षा का महत्व, समाज पर इसके सकारात्मक प्रभाव, शिक्षा प्राप्त करने वाली महिलाओं के उदाहरण (यदि आप जानते हैं), और शिक्षा के अवसरों तक पहुंच बढ़ाने की आवश्यकता।


3. कन्या-भ्रूण हत्या (Female Foeticide):


 * परिभाषा: यह गर्भ में ही मादा भ्रूण की पहचान करके उसे जानबूझकर समाप्त करने की अवैध और अनैतिक प्रथा है।

 * कारण:

   * पुत्र वरीयता (बेटे की चाहत)।

   * दहेज प्रथा का डर।

   * पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता।

   * अज्ञानता और अंधविश्वास।

 * दुष्प्रभाव:

   * बाल लिंगानुपात में असंतुलन, जिससे सामाजिक समस्याएं पैदा होती हैं (जैसे शादी के लिए लड़कियों की कमी)।

   * महिलाओं के प्रति हिंसा में वृद्धि।

   * लैंगिक असमानता का बढ़ना।

   * नैतिक और मानवीय मूल्यों का पतन।

 * आप क्या लिख सकते हैं: कन्या-भ्रूण हत्या क्या है, इसके कारण, इसके भयानक सामाजिक परिणाम, और इसे रोकने के लिए कानूनों और सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता। आप इस प्रथा के खिलाफ सशक्त संदेश दे सकते हैं।

चार्ट पेपर पर कैसे लिखें:

 

 * स्लोगन और नारे: संबंधित विषयों पर कुछ प्रेरक स्लोगन या नारे लिखें।

 * चित्र/रेखाचित्र: यदि संभव हो, तो संबंधित चित्र या रेखाचित्र बनाएं जो आपके संदेश को अधिक प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करें।

 * रंग और स्वच्छता: अपने चार्ट पेपर को रंगीन और साफ-सुथरा रखें ताकि वह आकर्षक लगे।

यह जानकारी आपको अपने चार्ट पेपर तैयार करने में निश्चित रूप से मदद करेगी।


प्रश्न 2. स्त्री सम्माननीय है इस आशय के श्लोक, दोहे आदि को पुस्तकालय से ढूँढकर पढ़िए और किन्हीं पाँच का लेखन कीजिए।

उत्तर: "स्त्री सम्माननीय है" यह केवल एक कथन नहीं, बल्कि एक शाश्वत सत्य है जिसे भारतीय संस्कृति में आदिकाल से महत्व दिया गया है। विभिन्न ग्रंथों, काव्यों और लोक-साहित्य में स्त्रियों के सम्मान, शक्ति और महत्व को दर्शाने वाले अनेक श्लोक, दोहे और छंद मिलते हैं। यहाँ ऐसे ही पाँच प्रमुख उदाहरण प्रस्तुत हैं:

दोहे:

 * "नारी माता, बहन है, नारी जग का मूल।

   नारी चंडी रूप है, नारी कोमल फूल।।"

   * आशय: यह दोहा बताता है कि स्त्री ही सृष्टि का आधार है। वह ममतामयी माँ, स्नेही बहन के रूप में होती है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर दुर्गा (चंडी) का विकराल रूप भी धारण कर सकती है, साथ ही वह फूल जैसी कोमल भी होती है।

 * "बिन नारी बनता नहीं, एक सुखी परिवार।

   नारी को सम्मान दो, यह उसका अधिकार।।"

   * आशय: यह दोहा स्पष्ट करता है कि स्त्री के बिना कोई भी परिवार पूर्ण और सुखी नहीं हो सकता। अतः उसे सम्मान देना केवल एक कर्तव्य नहीं, बल्कि उसका मौलिक अधिकार है।

 * "नारी से घर-बार है, है रिश्तों में जान।

   सबको करना चाहिए, नारी का सम्मान।।"

   * आशय: यह दोहा दर्शाता है कि स्त्री ही घर को घर बनाती है और सभी रिश्तों में प्राण फूँकती है। इसलिए, हर व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह नारी का सम्मान करे।

श्लोक:

 * "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।

   यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्रफलाः क्रियाः।।"

   * आशय: (मनुस्मृति) जहाँ नारियों की पूजा (सम्मान) होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं (अर्थात् सुख-समृद्धि आती है)। जहाँ इनकी पूजा (सम्मान) नहीं होती, वहाँ सभी कार्य निष्फल हो जाते हैं।

 * "या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।

   नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।"

   * आशय: (दुर्गा सप्तशती) जो देवी सभी प्राणियों में शक्ति के रूप में विराजमान हैं, उन्हें बार-बार नमस्कार है। यह श्लोक स्त्री को साक्षात् शक्ति का स्वरूप मानता है


प्रश्न 3. स्त्री को सबला बनाने हेतु विचार संबंधी दस स्लोगन बनाइए एवं उनका लेखन कीजिए।

उत्तर: स्त्री को सबला (सशक्त) बनाने के विचार को बढ़ावा देने हेतु यहाँ दस प्रेरक स्लोगन प्रस्तुत हैं:

 * महिला अबला नहीं सबला है, जीवन कैसे जीना यह उसका फैसला है।

  * आशय: स्त्री कमजोर नहीं, बल्कि शक्तिशाली है और अपने जीवन के निर्णय लेने का अधिकार उसे है।

 * नहीं सहना है अत्याचार, महिला सशक्तिकरण का यही है मुख्य विचार।

   * आशय: अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना ही महिला सशक्तिकरण की नींव है।

 * महिलाओं ने ठाना है, महिला सशक्तिकरण को अपनाना है।

   * आशय: यह महिलाओं का दृढ़ संकल्प है कि वे सशक्त बनें।

 * महिलाएं आगे बढ़ रही हैं, हर कुरीतियों से लड़ रही हैं।

   * आशय: स्त्रियाँ समाज की बुराइयों का सामना कर प्रगति कर रही हैं।

 * सम्मान, प्रतिष्ठा और प्यार, महिला सशक्तिकरण के हैं आधार।

   * आशय: ये तीनों तत्व महिला सशक्तिकरण के लिए अनिवार्य हैं।

 * "सशक्त नारी, सुखी परिवार", यही है समृद्ध समाज का आधार।

   * आशय: एक सशक्त महिला ही एक सुखी और समृद्ध परिवार का निर्माण करती है।

 * शिक्षा हर बेटी का अधिकार, लाएगा जीवन में नया संचार।

   * आशय: बेटियों की शिक्षा से ही उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आएगा।

 * तोड़ो रूढ़ि की दीवार, नारी शक्ति का करो स्वीकार।

   * आशय: पुरानी सोच को छोड़कर नारी की शक्ति को पहचानें और स्वीकार करें।

 * हर क्षेत्र में नारी है महान, आओ करें हम उसका सम्मान।

   * आशय: जीवन के हर क्षेत्र में महिलाएँ उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं, हमें उनका सम्मान करना चाहिए।

 * जब जागेगी नारी शक्ति, बदलेगी समाज की तस्वीर हर व्यक्ति।

   * आशय: नारी शक्ति के जागृत होने से ही समाज में वास्तविक परिवर्तन आएगा।



प्रश्न 4. (क) विवाह में 'कन्यादान' की रस्म क्यों होती है? घर के बड़ों से पता करके लिखिए।

उत्तर: विवाह में 'कन्यादान' की प्रथा हिंदू समाज में एक बहुत पुरानी और महत्वपूर्ण परंपरा है। यह रस्म केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरे सामाजिक, धार्मिक और भावनात्मक अर्थ छिपे हैं।

यह प्रथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है और घर के बड़े-बुजुर्गों से पता करने पर इसके कई कारण और मान्यताएँ सामने आती हैं:

 * सर्वश्रेष्ठ दान की अवधारणा: भारतीय संस्कृति में 'कन्यादान' को सभी दानों में श्रेष्ठ माना गया है। ऐसी मान्यता है कि कन्या का दान करने से व्यक्ति को अतुलनीय पुण्य की प्राप्ति होती है और वह मोक्ष का अधिकारी बनता है। यह माना जाता है कि अपने जीवन के सबसे प्रिय अंश को किसी और को सौंपना सबसे बड़ा त्याग है।

 * दो परिवारों का मिलन: कन्यादान केवल लड़की को वर को सौंपना नहीं है, बल्कि यह दो परिवारों, दो कुलों का पवित्र मिलन है। इस रस्म के माध्यम से लड़की के माता-पिता अपनी बेटी को वर और उसके परिवार को सौंपते हुए उनसे यह अपेक्षा करते हैं कि वे उनकी बेटी को अपने परिवार का अभिन्न अंग मानेंगे और उसे स्नेह व सम्मान देंगे।

 * पिता का दायित्व और समर्पण: कन्यादान की रस्म पिता के दायित्व और बेटी के प्रति उनके समर्पण को दर्शाती है। यह पिता द्वारा बेटी के पालन-पोषण के दायित्व को पूरा करने और उसे एक सुयोग्य वर के हाथों सौंपने का प्रतीक है, ताकि वह अपने नए जीवन में सुखी रहे।

 * पारंपरिक और पौराणिक महत्व: पौराणिक कथाओं और धर्मग्रंथों में भी कन्यादान का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि राजा दक्ष ने अपनी पुत्री सती का दान भगवान शिव को किया था, और इसी तरह कई अन्य देवी-देवताओं और राजाओं ने अपनी पुत्रियों का दान किया। यह प्रथा इन्हीं प्राचीन मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है।

 * नए जीवन की शुरुआत: कन्यादान के बाद लड़की अपने मायके से विदा होकर पति के घर जाती है, जहाँ वह एक नए जीवन की शुरुआत करती है। यह रस्म उसके जीवन में एक बड़े बदलाव और नई भूमिका के संक्रमण का प्रतीक है।

आज के आधुनिक काल में भले ही 'दान' शब्द पर कुछ लोग आपत्ति करते हों, क्योंकि कन्या कोई वस्तु नहीं है, फिर भी अधिकांश लोग इस प्रथा का पालन करते हैं। वे इसे अपनी बेटी को सम्मानपूर्वक विदा करने और नए जीवन के लिए आशीर्वाद देने के रूप में देखते हैं। यह हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो त्याग, प्रेम और रिश्तों के महत्व को दर्शाता है।



प्रश्न:(ख) क्या सभी समुदायों में विवाह की रस्में समान होती हैं? अपने उत्तर के पक्ष में दो अलग-अलग समुदाय से जुड़े लोगों से जानकारी प्राप्त कीजिए और उन रस्मों के बारे में लिखिए।

उत्तर: सभी समुदायों में विवाह की रस्में अलग-अलग होती हैं। यदि कुछ समानताओं को छोड़ दिया जाए तो लगभग रस्मों में भिन्नता देखने को मिलती है। परंतु कन्या को सभी समुदाय में एक समान तरीके से पिता के घर से जाना ही होता है, विवाह के उपरांत। बारात का आगमन सभी धर्मों में होता है, और बिदाई भी। परंतु कुछ वैवाहिक रस्मों में भिन्नता है। हिन्दुओं में मंत्रोच्चार के बाद फेरे और फिर शपथ ली जाती है। वहीं मुस्लिम समुदाय में निकाह, मेहर आदि जैसी रस्मों के बाद ही विवाह संपन्न हो जाता है। ये सब रस्में आज के संदर्भ में बहुत बदल गई हैं। आज के आधुनिक काल में सुविधा का विशेष ध्यान रखा जाता है। अनेक रस्में सुविधा के अनुसार ही निभाई जाती हैं। ईसाई, पारसी, हिन्दू, सिख समुदाय भी लगभग इन्हीं प्रथाओं का पालन करते हैं। इन सभी समुदायों में भी बारात आगमन और कन्या की विदाई एक जैसी ही होती है।



पिछला पाठ —


कक्षा 10 वीं हिन्दी पाठ 3.1 माटीवाली।matiwali। CGBSE 






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