Type Here to Get Search Results !

कक्षा 10 हिंदी भाग 2.3 अपनी-अपनी बीमारी: | apni apni bimari (हरिशंकर परसाई) CBSE BOARD प्रश्न उत्तर

 कक्षा 10 हिंदी भाग 2.3 

 पाठ –अपनी-अपनी बीमारी

लेखक – हरिशंकर परसाई

अपनी-अपनी बीमारी पाठ के व्यंग्यात्मक वाक्य | कक्षा 10 हिंदी


पाठ से

प्रश्न 1. 'बीमारी' शब्द को लेखक ने किन-किन संदर्भों में प्रयोग किया है?
उत्तर: लेखक ने 'बीमारी' शब्द का प्रयोग धनी और प्रभावशाली वर्ग पर व्यंग्य कसने के लिए किया है. उन्होंने बताया है कि समाज में फैली हुई जो भी विकृतियाँ और समस्याएँ हैं, वे केवल सामाजिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक भी हैं. उनका आशय है कि पूरे समाज को लालच, अत्यधिक महत्त्वाकांक्षा और अनुचित अपेक्षाओं जैसी गंभीर "बीमारियों" ने घेर रखा है, जिससे पूरी मानवता पतन की ओर अग्रसर है.
प्रश्न 2. पाठ में दिया गया शोक समाचार - "बड़ी प्रसन्नता की बात है... से क्यों शुरू हुआ है?" अपना तर्क दीजिए।
उत्तर: लेखक ने अपनी व्यंग्यात्मक शैली का उपयोग करके समाज के उन समृद्ध व्यक्तियों पर तीखा प्रहार किया है. इस पंक्ति के माध्यम से लेखक यह व्यक्त करना चाहते हैं कि यदि कोई सामान्य व्यक्ति कर (टैक्स) चुकाता है, तो यह प्रसन्नता का विषय है. लेखक ने उन कर-चोरों पर व्यंग्य करते हुए कहा है कि संपन्न व्यक्ति असीमित धन अर्जित करने के बाद भी टैक्स भरने से बचते हैं. इसका सीधा अर्थ यह है कि वे कर चोरी में लिप्त हैं.


प्रश्न 3. "गाँधीजी विनोबा जैसों की ज़िन्दगी बर्बाद कर गए" इस पंक्ति का आशय क्या है? लिखिए।
उत्तर: इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह व्यक्त करना चाहता है कि वह समाज में व्याप्त बुराइयों और विकृतियों से ग्रसित होने के बजाय एक सम्मानित और प्रतिष्ठित व्यक्ति बनना चाहता है। कवि का विचार है कि ईमानदारी, सिद्धांतों का पालन, जीवन मूल्यों का सम्मान और आदर्शों का पालन करने वाले व्यक्तियों को अक्सर समाज में दुख और उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। इसी वजह से, सामान्य लोगों के लिए आज के चुनौतीपूर्ण समय में सम्मानपूर्वक जीवन बिताना एक अत्यंत कठिन कार्य बन गया है।


प्रश्न 4. 'टैक्स को बीमारी' के रूप में देखने का क्या आशय है?
उत्तर: लेखक धनी वर्ग के लोगों में कर चुकाने के प्रति अनिच्छा को देखकर ईर्ष्या महसूस करते हैं। उनका मानना है कि संपन्न व्यक्ति पर्याप्त धनवान होने के बावजूद करों का भुगतान नहीं करना चाहते। यहाँ लेखक साहित्यकारों की आर्थिक कठिनाइयों को निशाना बनाते हुए व्यंग्य कर रहे हैं। उनका कहना है कि टैक्स देने वालों को इस "बीमारी" से छुटकारा नहीं मिल सकता। टैक्स वास्तव में कोई बीमारी नहीं, बल्कि एक आवश्यकता है, जो आय को प्रमाणित करती है। तो फिर इसमें कर चोरी क्यों? अतः टैक्स देने से बचना नहीं चाहिए।

प्रश्न 5. लेखक टैक्स की बीमारी को क्यों अपनाना चाहता है?
उत्तर: लेखक ने समाज के उन संपन्न लोगों पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि वह भी 'टैक्स की बीमारी' से ग्रसित होना चाहते हैं, ताकि समाज में एक सम्मानित व्यक्ति बन सकें। उनका मानना है कि टैक्स चुकाने के कारण ही उनका सामाजिक और आर्थिक जीवन स्तर बेहतर होगा, और उन्हें समाज में अधिक मान-सम्मान भी मिलेगा।

पाठ से आगे —

प्रश्न 1. 'सबका दुख अलग-अलग होता है', किस-किस तरह के दुख के अनुभव आपने किए हैं? उन्हें लिखिए।
उत्तर: लेखक ने 'टैक्स की बीमारी' को एक ऐसी लाइलाज समस्या बताया है जिसका कोई समाधान नहीं। उनका कहना है कि यदि कोई व्यक्ति टैक्स से पीड़ित है, तो डॉक्टर भी उसे कोई दवा नहीं दे सकते। लेखक यह भी कहते हैं कि हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से दुखी है: कोई आर्थिक तंगी के कारण परेशान है, तो कोई टैक्स चुकाने के कारण। कुछ लोग धन के अभाव से दुखी हैं, तो कुछ ऐशो-आराम की वस्तुओं की कमी से। किसी को व्यक्तिगत नुकसान या व्यापार में घाटे का दुख है, तो कोई बिजली के बिल से परेशान है, और कोई महंगाई से व्यथित है। कहने का तात्पर्य यह है कि यद्यपि सभी का दुख अलग-अलग होता है, परंतु उसके पीछे का कारण लगभग एक जैसा ही होता है। यानी, दुखी तो सभी हैं, लेकिन उनके दुख का स्वरूप एक-दूसरे से भिन्न है।


प्रश्न 2. अपने परिवार के सभी लोगों से उनके दुःख पूछिए और लिखिए। यह भी बताइए कि आप उनके लिए क्या कर सकते हैं कि उनके दुख दूर हों।
उत्तर: हर व्यक्ति और उसके परिवार की संरचना अलग-अलग होती है। परिवार के भीतर भी प्रत्येक सदस्य को किसी न किसी प्रकार का दुःख अवश्य होता है। कोई बेईमानी से परेशान है, तो कोई महंगाई से, कोई दूसरों की संपन्नता को देखकर दुखी है, तो कोई किसी असाध्य रोग से पीड़ित है। कहने का तात्पर्य यह है कि हर व्यक्ति का अपना अलग-अलग दुख है। किसी को रोज़ी-रोटी की चिंता है, तो कोई अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित है। इन सभी दुखों को दूर करने के लिए उचित मार्गदर्शन, आपसी सहयोग और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार की आवश्यकता है।


प्रश्न 3. अक्सर लोग अपनी बुनियादी ज़रूरतों के रहते हुए भी और ज़्यादा की चाह करते रहते हैं। पाठ में भी एक-दो ऐसे दुखी लोगों के उदाहरण दिए हुए हैं। आपके अपने अनुभव में भी कुछ उदाहरण होंगे। उनके बारे में लिखिए।

उत्तर: कई बार लोग अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही नहीं, बल्कि उससे अधिक पाने की लालसा में गलत गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं। समाज में ऐसे लोगों की भरमार है जो मेहनत से ज़्यादा पाने की इच्छा रखते हैं। हालाँकि, उन्हें यह एहसास नहीं होता कि आवश्यकता से अधिक की चाहत ही उनके दुःख का मूल कारण और परिणाम बन रही है। ऐसे लोगों की बढ़ती संख्या के कारण ही पूरे समाज में असंतोष और दुःख व्याप्त हो रहा है। इसमें दूसरों की बेईमानी, कम आय, निम्न जीवन स्तर, और पर्याप्त धन-संपत्ति का अभाव ही सबके दुःख का मुख्य कारण बनता जा रहा है। जीवन में असंतुष्ट रहना ही उनके दुःख का सबसे बड़ा कारण सिद्ध हो रहा है।

भाषा के बारे में —


प्रश्न 1. कई बार किसी बात को सीधे न कहकर कुछ इस अंदाज़ में प्रस्तुत किया जाता है कि अर्थ सीधे उस वाक्य में न होकर कहीं और होता है। जैसे इस पाठ में ही 'टैक्स के मारे मर रहे हैं', 'बेईमानी की बीमारी से मर रहे हैं', वाक्य आए हैं। इनका अर्थ अगर सीधे शब्दों में लें तो अनर्थ हो सकता है। यहाँ 'मर रहे हैं' का अर्थ मृत्यु न होकर दुखी व विचलित होना है। इस पाठ से ऐसे अंश ढूँढ़िए जिनके सामान्य अर्थ और समझे जाने वाले वाक्य अर्थ में अंतर है।


वाक्य अर्थ में अंतर

सामान्य अर्थ तथा समझे जाने वाले वाक्य अर्थ में अंतर

वाक्य वाक्य अर्थ (संशोधित)
1. टैक्स से मरना इसका लाक्षणिक अर्थ है कि कोई व्यक्ति अत्यधिक कर-भार के कारण अत्यंत परेशान और हताश हो रहा है। यह उसकी आर्थिक स्थिति पर पड़ने वाले दबाव को दर्शाता है।
2. कमबख्त बीमारी ही ऐसी है। यह वाक्य किसी ऐसी गंभीर समस्या या विकृति की ओर इशारा करता है, जो व्यक्ति को अंदर से खोखला कर देती है या उसे अत्यधिक कष्ट पहुँचाती है। यह सिर्फ शारीरिक बीमारी नहीं, बल्कि समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार या नैतिक पतन जैसी समस्याओं के लिए प्रयुक्त हो सकता है।
3. तुच्छ बीमारियाँ कवि का आशय ऐसी छोटी-छोटी या सामान्य दिखने वाली समस्याओं से है जो असल में व्यक्ति को अंदर ही अंदर परेशान करती हैं। जैसे कि सामान्य बीमारियाँ (जुकाम, बुखार), छोटी-मोटी चिंताएँ, या जीवन के मामूली झंझट। ये शारीरिक या मानसिक हो सकती हैं जो व्यक्ति को विचलित करती हैं।
4. गांधी जी, विनोबा जी जैसो ने लोगों की ज़िन्दगी बर्बाद कर दी। इस पंक्ति का व्यंग्यात्मक अर्थ यह है कि गांधीजी और विनोबाजी जैसे आदर्शवादी व्यक्तियों के सिद्धांतों या शिक्षाओं का पालन करने वाले ईमानदार लोगों को समाज में कठिनाइयों और उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। उनके आदर्शों पर चलने के कारण ऐसे लोगों का जीवन व्यावहारिक रूप से चुनौतीपूर्ण बन जाता है, क्योंकि वे नैतिक मूल्यों से समझौता नहीं करते।

प्रश्न 2. किसी अखबार से समाचार, विज्ञापन, शोक संदेश, लेख व संपादकीय की एक-एक कतरन निकालिए और उसे भाषा, वाक्य संरचना, शब्द चयन और अर्थ की दृष्टि से पढ़िए। शिक्षक की मदद से उनके फ़र्क पहचानिए एवं अपने विश्लेषण को सारणी के रूप में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर: यह एक गतिविधि-आधारित प्रश्न है जिसे विद्यार्थियों को स्वयं शिक्षक के मार्गदर्शन में पूरा करना होगा। इसमें उन्हें अखबार से विभिन्न प्रकार की सामग्री (समाचार, विज्ञापन, शोक संदेश, लेख, संपादकीय) एकत्रित करनी होगी और फिर भाषा की बारीकियों, वाक्य संरचना, शब्द चयन और अर्थ की दृष्टि से उनका तुलनात्मक विश्लेषण कर सारणीबद्ध करना होगा।

प्रयोजना–कार्य

प्रश्न 1. टैक्स क्या होता है? यह क्यों लगाया जाता है? इसके निर्धारण का क्या आधार है एवं एक सामान्य व्यक्ति को किस - किस प्रकार के टैक्स अदा करने पड़ते हैं? सामाजिक विज्ञान (अर्थशास्त्र) के शिक्षक के सहयोग से इसके बारे में जानने - समझने का प्रयास करें!
उत्तर: कर (टैक्स) वह अनिवार्य योगदान है जो सरकार द्वारा अधिरोपित किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य सामाजिक कल्याण और आर्थिक स्थिरता प्राप्त करना है, जैसे आय व संपत्ति की विषमताओं को कम करना, रोजगार के अवसर बढ़ाना, और देश की वित्तीय स्थिरता व समृद्धि सुनिश्चित करना। यह एक आवश्यक भुगतान है जिसे सरकार के स्थापित कानूनों के अनुरूप चुकाया जाता है।
टैक्स के निर्धारण का आधार व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत आय विवरण होता है, जो आयकर अधिनियम की धारा 139(1) के तहत आता है। यदि व्यक्ति को धारा 142(1) के तहत कोई नोटिस प्राप्त होता है, तो उसके आधार पर भी कर निर्धारण किया जा सकता है।
भारत में स्कूल निर्माण, सड़क और बिजली की व्यवस्था, तथा अस्पतालों जैसी सार्वजनिक सुविधाओं का लाभ सभी नागरिक उठाते हैं। इन सुविधाओं का निर्माण और रखरखाव सरकार की जिम्मेदारी है। इन कार्यों के लिए धन जुटाने का एक माध्यम कर उगाही है।
एक सामान्य व्यक्ति को मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार के कर अदा करने पड़ते हैं:
(1) उत्पादन कर (जैसे वस्तु एवं सेवा कर - GST)
(2) बिक्री कर (अब GST में शामिल)
(3) आयकर
(4) न्यूनतम वैकल्पिक कर (MAT) - हालांकि यह एक विशिष्ट प्रावधान है।


पिछला पाठ 

कक्षा दसवीं हिंदी पाठ 2.2
"जनतंत्र का जन्म Jantantra Ka Janm"– Class 10 Hindi Poem Explanation | प्रश्न उत्तर




Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.