प्रश्न 1. विंध्य और सतपुड़ा को लेखक ने किस रूप में चित्रित किया है?
उत्तर: लेखक ने विंध्य और सतपुड़ा को एक साथ मिलकर बनी एक अत्यंत सुंदर और मनमोहक आकृति के रूप में दर्शाया है, जिसे 'मेकाल' नाम दिया गया है। मेकाल पर्वत के दाहिनी ओर विंध्याचल और बाईं ओर सतपुड़ा स्थित है। इन दोनों विशाल पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य से ही नर्मदा नदी प्रवाहित होती है। विंध्य और सतपुड़ा की यह प्राकृतिक संरचना देखने में किसी हथेली के समान प्रतीत होती है, और इसी प्राकृतिक गोद में नर्मदा नदी अपनी लहरों के साथ चंचलता से बहती हुई अठखेलियाँ करती है।
प्रश्न 2. वनवासियों का जीवन कैसा होता है?
उत्तर: वन में रहने वाले लोगों का जीवन बेहद सरल, शांतिपूर्ण और चिंताओं से मुक्त होता है। उनका दैनिक जीवन सीधा-सादा होता है। वनवासी महिलाएँ अक्सर बांस से बनी टोकरियों में आम और जामुन जैसे फल भरकर बेचने के लिए ले जाती हैं। ये लोग यद्यपि अक्सर भौतिक सुविधाओं के अभाव में जीवन व्यतीत करते हैं, फिर भी वे संतोष और शांति के साथ अपना जीवन यापन करते हैं।
प्रश्न 3. "अमरेश्वर के कंठ से ही नर्मदा निकली है" - यह पंक्ति किस संदर्भ में कही गई है?
उत्तर: यह कथन नर्मदा नदी के उद्गम स्थल के संदर्भ में कहा गया है। इसका अर्थ यह है कि नर्मदा नदी एक जलकुंड से निकलती है, और यह जलकुंड अमरेश्वर नामक स्थान पर स्थित है। यह कुंड अत्यंत मनोरम और देखने योग्य है, जिसके चारों ओर मंदिर बने हुए हैं। यह कुंड विशाल, भव्य और मजबूत पत्थरों से बना हुआ है। यह कुंड ही नर्मदा का वास्तविक जन्म स्थान है। इस कुंड में नर्मदा का जल निरंतर एकत्रित होता रहता है। कुंड से निकलने के बाद, नर्मदा लगभग 5-6 किलोमीटर तक भूमिगत होकर बहती है, और फिर पश्चिम दिशा में 'कपिल धारा' नामक स्थान पर सतह पर प्रकट होती है।
प्रश्न 4. "अमरकंटक ने अपनी आत्मा से नर्मदा को जन्म दिया है" पाठ के अनुसार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: "अमरकंटक ने अपनी आत्मा से नर्मदा को जन्म दिया है" इस कथन का आशय यह है कि नर्मदा कुंड, जो नर्मदा नदी का उद्गम स्थल है, अमरकंटक पर्वत के एक शिखर पर स्थित है और इसके आसपास की भूमि भी ऊँची है। इस ऊँचाई से निकलने वाला जल लगातार नर्मदा कुंड में प्रवाहित होता रहता है। इसी निरंतर जल प्रवाह के कारण कुंड में हमेशा पानी भरा रहता है। यही वजह है कि पाठ में यह कहा गया है कि अमरकंटक ने अपनी आत्मा से नर्मदा को जन्म दिया है, क्योंकि यह पर्वत ही नर्मदा के जीवन और प्रवाह का मूल स्रोत है।
प्रश्न 5. निम्नांकित का आशय स्पष्ट कीजिए
(क) दूर से दृष्टि पड़ती है कि कोई रजत धार आकाश से झर रही है। चारों तरफ हरा - भरा वानस्पतिक संसार है, एक तरफ अपनी अचलता और विश्वास में समृद्ध है ऊपर आसमान में बादलों की छिप छिपोली और धमा चौकड़ी मची है।
उत्तर: इन पंक्तियों में लेखक उस समय का वर्णन कर रहे हैं जब विंध्य और सतपुड़ा की पहाड़ियों पर वर्षा हो रही होती है। लेखक बताते हैं कि दूर से देखने पर ऐसा लगता है मानो आकाश से चांदी की कोई धारा नीचे गिर रही हो, जो दरअसल वर्षा की बूंदें हैं। चारों ओर प्रकृति हरी-भरी और अत्यंत सुंदर दिखाई देती है। एक ओर, पहाड़ अपनी स्थिरता, दृढ़ता और मजबूती का प्रतीक बने खड़े हैं, वहीं दूसरी ओर, आसमान में बादल लगातार आते-जाते, चमकते और गरजते हुए लुका-छिपी का खेल खेल रहे हैं, जिससे एक अद्भुत और रोमांचक दृश्य उत्पन्न हो रहा है।
(ख) अमरकंठ नर्मदा का यह क्षेत्र देवों और मनुजों, मिथकों और लोककथाओं, ऋषियों और वर्तमान के रचनाकारों को अपने संदर्भों में समाए हुए है। कालिदास ने इसे आम्रकूट कहा है।
उत्तर: इन पंक्तियों का अर्थ यह है कि नर्मदा नदी का यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही देवी-देवताओं और मनुष्यों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। इस इलाके में कई पुरानी कहानियाँ, किंवदंतियाँ और लोककथाएँ प्रचलित हैं। वर्तमान समय में भी नर्मदा का प्राकृतिक सौंदर्य कवियों, लेखकों और अन्य रचनाकारों के लिए प्रेरणा का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है। इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता और समृद्धि ने अनेक साहित्यिक कृतियों को जन्म दिया है। महान कवि कालिदास ने भी इस क्षेत्र को 'आम्रकूट' नाम से संबोधित किया है। संभवतः उस समय यहाँ आम के ढेर सारे पेड़ मौजूद थे, हालाँकि अब उनकी संख्या काफी कम हो गई है। लेकिन आज भी नर्मदा का यह क्षेत्र अपनी प्राकृतिक सुंदरता और संपदा से भरपूर है।
प्रश्न 6. "नर्मदा सूख जाएगी तो हम कैसे बच सकेंगे?" वनवासी स्त्री द्वारा यह बात क्यों कही गई?
उत्तर: वनवासी स्त्री द्वारा यह बात, कि "नर्मदा सूख जाएगी तो हम कैसे बच सकेंगे?", यह दर्शाती है कि नर्मदा नदी वहाँ के मनुष्यों, जीव-जंतुओं, पेड़ों और जंगलों के लिए कितनी अधिक महत्वपूर्ण है। नर्मदा नदी के अस्तित्व से ही वहाँ की संस्कृति और प्रकृति जीवित है। यदि नर्मदा नहीं होगी, तो उस क्षेत्र में जीवन और प्रकृति की कल्पना करना भी असंभव हो जाता है। नर्मदा वास्तव में सतपुड़ा और अमरकंटक के पूरे क्षेत्र की जीवन-रेखा है, जिसके बिना वहाँ का जीवन संभव नहीं है।
प्रश्न 7. टिप्पणी लिखिए -
(क) सोनमुड़ा
(ख) आम्रकूट
(ग) मेकल
(घ) माई की बगिया
उत्तर:
(क) सोनमुड़ा
सोनमुड़ा सोन नदी का उद्गम स्थल है, जो अमरकंटक के पश्चिमी भाग में स्थित है। सोन नदी यहाँ से निकलकर पूर्व दिशा में बहती है और यह अंततः गंगा नदी में मिल जाती है, जिसकी यह एक सहायक नदी है।
(ख) आम्रकूट
महान कवि कालिदास ने प्राचीन काल में नर्मदा के आसपास के क्षेत्र को 'आम्रकूट' नाम दिया था। संभवतः उस समय इस क्षेत्र में आम के वृक्ष बहुत अधिक संख्या में पाए जाते थे, इसी कारण इसे यह नाम मिला।
(ग) मेकल
'मेकल' उस स्थान को कहते हैं जहाँ विंध्य और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाएँ आपस में मिलती हैं। मेकल पर्वत के दाहिनी ओर विंध्य पर्वत और बाईं ओर सतपुड़ा पर्वत स्थित है।
(घ) माई की बगिया
माई की बगिया अमरकंटक और नर्मदा क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण स्थान है। लेखक का मानना है कि प्राचीन समय में माई की बगिया से भी जल स्रोत निकला करता था। हालाँकि, वर्तमान समय में वही जलधारा नर्मदा कुंड तक ही पहुँच पाती है। यह स्थान सोन और नर्मदा नदियों की क्रीडास्थली के रूप रूप में भी जाना जाता है और ऋषि मार्कण्डेय की तपस्या स्थली भी रही है।
पाठ से आगे —
प्रश्न 1. नर्मदा नदी लोगों के जीवन को कैसे खुशहाल बनाती है?
उत्तर: प्राचीन काल से ही हम देखते आ रहे हैं कि किसी भी संस्कृति और सभ्यता का विकास किसी न किसी नदी के तट पर ही हुआ है। नर्मदा जैसी महत्वपूर्ण नदियाँ मानव जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। नर्मदा केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं, बल्कि प्रकृति, जंगल, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों, सभी के लिए आवश्यक है। नर्मदा के जल के बिना यह क्षेत्र शुष्क और निर्जन हो जाएगा, जिसके कारण यहाँ जीवन संभव नहीं हो सकेगा।
प्रश्न 2. "नर्मदा का उद्गम : अमरकंटक" पाठ में वर्णित नैसर्गिक सौंदर्य को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर: विंध्य और सतपुड़ा का प्राकृतिक सौंदर्य अत्यंत मनमोहक है। यहाँ ऊँचे-ऊँचे पहाड़, सदाबहार पेड़ और हरियाली वर्षभर बनी रहती है। जब वर्षा ऋतु आती है, तो इसका प्राकृतिक सौंदर्य और निखर उठता है। पहाड़ों से गिरते हुए झरने ऐसे दिखते हैं जैसे आकाश से चाँदी की धाराएँ गिर रही हों। अमरकंटक क्षेत्र की हरियाली देखने लायक है, और ऐसा लगता है जैसे पूरी प्रकृति हरी चुनरी ओढ़ रखी हो। यहाँ के लोग सीधे-सादे और मेहनती हैं। नर्मदा का उद्गम स्थान बहुत ही आकर्षक है। यहाँ एक विशाल और सुंदर जलकुंड है जिसके चारों ओर मंदिर बने हैं। 'माई की बगिया' और 'सोन' और 'नर्मदा' नदियों के उद्गम स्थान भी यहाँ हैं। यह स्थान ऋषि मार्कण्डेय की तपस्थली भी रही है। यहाँ आम और जामुन के वृक्षों की बहुलता है। नर्मदा कुंड से कुछ दूरी पर कपिलधारा नाम का झरना है। नर्मदा यहाँ लगभग 150 फीट ऊपर से गिरती है। यह दृश्य देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। ऊपर से गिरने के कारण पानी को रंग-बिरंगा दिखाई देता है और यही नर्मदा के जल का दिव्य रूप है। नर्मदा अपने इसी शुद्ध जल से पूरे मानव जीवन, वन और पशु-पक्षियों का पालन करती है।
प्रश्न 3. "अमरकंटक ने नर्मदा को जन्म देकर भारत को वरदान दिया है।" ऐसा क्यों कहा गया है विचार लिखिए।
उत्तर: यह कथन इस बात को दर्शाता है कि आदिकाल से ही किसी भी संस्कृति और सभ्यता के विकास में नदियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत जैसे देश में नदियों को माता के समान पूजा जाता है, क्योंकि नदियाँ आदिकाल से ही मानव सभ्यता, प्रकृति, वन, पशु-पक्षियों आदि का पोषण करती आ रही हैं। नर्मदा नदी अपने विशाल भू-भाग को सिंचित और उपजाऊ बनाकर सदियों से जीवन का आधार रही है। इसी कारण कहा गया है कि अमरकंटक ने नर्मदा को जन्म देकर पूरे भारत को एक महान वरदान दिया है, क्योंकि यह नदी करोड़ों जीवों और मानवों के लिए जीवनदायिनी है।
प्रश्न 4. अविवेकपूर्ण और अंधाधुंध खनन से अमरकंटक क्षेत्र के प्राकृतिक पर्यावरण को किस प्रकार का नुकसान हो रहा है? जानकारी जुटाकर लिखिए।
उत्तर: आज के समय में अविवेकपूर्ण और अंधाधुंध खनन एक बड़ी समस्या बन चुकी है। हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए जमीन से खनिज पदार्थों को निकालते हैं, लेकिन यह खनन प्रक्रिया अक्सर अनियंत्रित होती है, जिसके कारण पर्यावरण का लगातार दोहन हो रहा है। इसके परिणामस्वरूप हमारी प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है। अमरकंटक जैसे क्षेत्रों में, पेड़ों की लगातार कटाई और खनिज संपदा का अत्यधिक दोहन हो रहा है। आज कई जंगली जानवर लुप्त हो चुके हैं और कई दुर्लभ पेड़-पौधे भी विलुप्त होने की कगार पर पहुँच चुके हैं। वनों और प्राकृतिक संसाधनों के इस अनियंत्रित दोहन ने मानव जाति को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया है। इसी अतिदोहन के कारण हमें अकाल, सूखा, बाढ़, भूस्खलन जैसी कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है।
भाषा के बारे में —
प्रश्न 1. पाठ में कई जगह गुणवाचक विशेषणों का प्रयोग किया गया है - जैसे बादल सरई के ऊँचे-ऊँचे पेड़ों की फुगियों पर रहते अमरकंटक की समतल और रक्ताभ छवि से रूबरू होते आगे बढ़ते हैं। पंक्ति में 'ऊँचे' शब्द पेड़ों का गुण बता रहा है तथा 'रक्ताभ' शब्द छवि की विशेषता बता रहा है। इस प्रकार पाठ में आये विशेषणों को ढूँढ़कर लिखिए (जो शब्द किसी व्यक्ति या वस्तु के गुण, दोष आदि का बोध कराएँ, गुणवाचक विशेषण कहलाता है)।
गुणवाचक विशेषण – जो शब्द किसी व्यक्ति या वस्तु के गुण, दोष आदि का बोध कराये उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं।
उत्तर: गुणवाचक विशेषण ऐसे शब्द होते हैं जो किसी संज्ञा या सर्वनाम की गुणवत्ता, विशेषता, रंग, आकार, दशा, अवस्था, स्वाद, गंध आदि का बोध कराते हैं। पाठ में ऐसे कई गुणवाचक विशेषणों का प्रयोग किया गया है जो प्राकृतिक सौंदर्य और विभिन्न विशेषताओं को उजागर करते हैं। यहाँ कुछ उदाहरण दिए गए हैं:
* (1) सरई के ऊँचे-ऊँचे पेड़: यहाँ 'ऊँचे-ऊँचे' शब्द पेड़ों की ऊँचाई नामक गुण का वर्णन कर रहा है। यह पेड़ों के भव्य और विशाल स्वरूप को दर्शाता है, जो अमरकंटक की प्राकृतिक छटा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
* (2) कुंड विशाल है: इस वाक्य में 'विशाल' शब्द कुंड के आकार और भव्यता को बता रहा है। यह दर्शाता है कि नर्मदा का उद्गम स्थल एक बड़े और प्रभावशाली जलकुंड के रूप में है।
* (3) कुंड से पतली जलधारा निकलती है: यहाँ 'पतली' शब्द जलधारा की मोटाई या आकार की विशेषता को व्यक्त कर रहा है। यह इंगित करता है कि कुंड से निकलने पर नर्मदा का प्रारंभिक प्रवाह महीन और नाजुक होता है।
* (4) दृष्टि का धुँधलाका छाँटते हैं: इस वाक्यांश में 'धुँधलाका' शब्द दृष्टि की अस्पष्टता या धुँधलेपन के गुण को दर्शाता है। यह शायद सुबह के कोहरे या बादलों के कारण उत्पन्न होने वाली दृश्यता की कमी को इंगित करता है।
* (5) प्रकृति अपने निसर्ग पर बार-बार निहाल होकर गर्व करती रही होगी: यहाँ 'निहाल' शब्द प्रसन्नता या संतोष के गुण को व्यक्त करता है। यह दर्शाता है कि प्रकृति स्वयं अपनी सुंदरता और रचना पर बार-बार हर्षित और गौरवान्वित होती है।
प्रश्न 2. किसी प्राकृतिक स्थल की विशेषताओं को बताते हुए अपने मित्र को पत्र।
( रायपुर (छ.ग.),
दिनांक 19/06/2025)
प्रिय मित्र श्याम,
सप्रेम प्रणाम!
आशा है तुम और तुम्हारा परिवार सकुशल होंगे। मैं भी यहाँ सकुशल हूँ। तुम्हें यह जानकर बहुत खुशी होगी कि मैं दो दिन पहले ही नैनीताल की यादगार यात्रा से लौटा हूँ। नैनीताल वाकई एक अद्भुत और मनमोहक पर्वतीय स्थल है। भारत में जितने भी महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं, उनमें नैनीताल का एक विशेष स्थान है।
वहाँ के हरे-भरे पहाड़, झीलें और सुंदर प्राकृतिक दृश्य मन को मोह लेते हैं। नैनी झील में नौका विहार का आनंद ही कुछ और है। पहाड़ों के किनारे स्थित सुंदर घाटियाँ देखने लायक हैं। पहाड़ों से गिरते झरने दृश्य को और भी मनोरम बना देते हैं। नैनी झील के उत्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है, जिसके बारे में यह मान्यता है कि जब शिवजी सती माता का मृत शरीर लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब उनकी आँखें यहीं गिरी थीं। इसी स्थान पर बाद में एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। हर साल नवरात्रि के दौरान यहाँ भक्तों का मेला लगता है और माई की असीम कृपा बरसती रहती है।
क्या तुम भी मेरे साथ इस यात्रा पर होते? अपनी किसी यात्रा का अनुभव मुझे पत्र में ज़रूर बताना।
तुम्हारे माता-पिता को मेरा सादर प्रणाम कहना।
तुम्हारा मित्र,
[ सूरज कुमार ]
प्रश्न 3. इन वाक्यों को ध्यान से पढ़िए -
(क) अमरकंटक तो पहले भी जाना हुआ था।
(ख) वह भी विरह सन्तप्त होकर अमरकंटक के उच्च शिखर से छलांग लगा लेता है।
(ग) अमरेश्वर के कंठ से ही नर्मदा निकली है।
उपर्युक्त तीनों वाक्यों में प्रयुक्त होनेवाले अव्यय 'तो', 'भी' एवं 'ही' शब्द वाक्य में जिन शब्दों के बाद लगते हैं उनके अर्थ में विशेष प्रकार का बल ला देते हैं। इन शब्दों को 'निपात' कहा जाता है।
‘तो’, ‘भी’ एवं ‘ही’ शब्दों का प्रयोग करते हुए दो-दो वाक्य बनाइए और प्रत्येक के बारे में यह भी स्पष्ट कीजिए कि किन विशेष अर्थों में उनका प्रयोग होता है।
उत्तर:
जैसा कि बताया गया है, 'तो', 'भी' और 'ही' जैसे शब्द 'निपात' कहलाते हैं। ये ऐसे अव्यय होते हैं जो किसी शब्द या वाक्यांश पर जोर देने या उसके अर्थ में विशेष प्रकार का बल लाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। ये वाक्य के अर्थ को गहराई और विशिष्टता प्रदान करते हैं।
यहाँ 'तो', 'भी' और 'ही' शब्दों का प्रयोग करते हुए दो-दो वाक्य और उनके विशेष अर्थों का स्पष्टीकरण दिया गया है:
1. 'तो' निपात का प्रयोग:
'तो' निपात का प्रयोग अक्सर किसी शर्त, तुलना, या बात पर जोर देने के लिए किया जाता है।
* वाक्य 1: "अगर तुम पढ़ोगे, तो सफल होगे।"
* विशेष अर्थ: यहाँ 'तो' शब्द शर्त (पढ़ने की क्रिया) और उसके परिणाम (सफलता) के बीच के संबंध पर जोर दे रहा है। यह दर्शाता है कि सफलता तभी मिलेगी जब पढ़ने का कार्य पूरा होगा।
* वाक्य 2: "वह काम पूरा हो चुका है, तो अब हम जा सकते हैं।"
* विशेष अर्थ: इस वाक्य में 'तो' शब्द निष्कर्ष या परिणाम पर बल दे रहा है। काम पूरा होने के बाद 'जाने' की क्रिया को उचित ठहराया जा रहा है, और 'तो' इस औचित्य को मजबूत करता है।
2. 'भी' निपात का प्रयोग:
'भी' निपात का प्रयोग किसी बात की अतिरिक्तता, समानता, या समावेशन को दर्शाने के लिए किया जाता है।
* वाक्य 1: "राम भी मेरे साथ आया।"
* विशेष अर्थ: यहाँ 'भी' शब्द यह दर्शाता है कि राम किसी और के साथ या किसी और की तरह ही आया, यानी वह 'अतिरिक्त' रूप से शामिल था। यह राम के साथ होने पर जोर देता है।
* वाक्य 2: "मुझे पढ़ना भी है और खेलना भी है।"
* विशेष अर्थ: इस वाक्य में 'भी' दोनों क्रियाओं (पढ़ना और खेलना) के समान महत्व या समावेशन को दर्शाता है। यह बताता है कि दोनों कार्य एक साथ किए जाने हैं या दोनों ही आवश्यक हैं।
3. 'ही' निपात का प्रयोग:
'ही' निपात का प्रयोग किसी बात की निश्चितता, सीमा, या किसी क्रिया पर विशेष जोर देने के लिए किया जाता है।
* वाक्य 1: "वह कल ही आएगा।"
* विशेष अर्थ: यहाँ 'ही' शब्द 'कल' के समय पर जोर दे रहा है, जिसका अर्थ है कि वह न तो आज आएगा और न ही परसों, बल्कि ठीक 'कल' ही आएगा। यह निश्चितता को दर्शाता है।
* वाक्य 2: "मैंने उसे देखा ही नहीं।"
* विशेष अर्थ: इस वाक्य में 'ही' शब्द 'देखने' की क्रिया के अभाव पर अत्यंत बल देता है। यह स्पष्ट करता है कि देखने का कार्य बिल्कुल भी नहीं हुआ।
पिछला पाठ
कक्षा 10 वी हिंदी पाठ 1.1 चंद्र गहना से लौटती बेर' कवि केदारनाथ अग्रवाल (प्रश्न उत्तर सहित)