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कक्षा 10 हिन्दी – पाठ 1.3: बादल को घिरते देखा है (कवि: नागार्जुन)`

 

कक्षा 10 हिंदी पाठ 1.3 – बादल को घिरते देखा है

प्रश्न 1. मानसरोवर के कमल को स्वर्णिम कमल कहने का क्या आशय है?

उत्तर: मानसरोवर के कमल को 'सोने जैसा कमल' इसलिए कहा गया है क्योंकि जब सुबह सूरज की पहली किरणें इन कमलों पर पड़ती हैं, तो वे चमकने लगते हैं। कमल की पत्तियों पर जो ओस की छोटी-छोटी बूंदें होती हैं, उन पर जब सूरज की रोशनी पड़ती है, तो वे सोने जैसी चमकीली दिखाई देती हैं। इसलिए ये कमल 'स्वर्णिम' यानी सोने जैसे लगते हैं!


प्रश्न 2: 'बादल को घिरते देखा है' कविता के प्रकृति चित्रण को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर: कवि नागार्जुन ने 'बादल को घिरते देखा है' कविता में प्रकृति की बहुत ही सुंदर तस्वीरें खींची हैं। इस कविता को पढ़कर ऐसा लगता है, जैसे हम ख़ुद हिमालय के पहाड़ों में पहुँच गए हों। यहाँ प्रकृति की कुछ प्यारी बातें बताई गई हैं:

 * मानसरोवर की चमकती सुबह: कविता बताती है कि मान सरोवर नाम की एक सुंदर झील है। जब सुबह-सुबह सूरज की किरणें उस झील में गिरी हुई छोटी-छोटी ओस की बूंदों पर पड़ती हैं, तो वे सोने की तरह चमकने लगती हैं। ऐसा लगता है जैसे चारों तरफ़ सोने की चादर बिछ गई हो!

 * हिमालय की नीली-काली झीलें: हिमालय पर्वत पर ऊँचाई पर बहुत सारी छोटी-छोटी झीलें हैं। ये झीलें नीले और कुछ गहरे (श्याम) रंग की दिखती हैं, और इन्हें देखना आँखों को बहुत सुकून देता है।

 * हंसों का प्यारा सफ़र: जब वसंत का मौसम आता है, तो बहुत दूर-दूर के देशों से सुंदर हंस उड़कर इन झीलों में घूमने आते हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे वे प्रकृति के इस सुंदर घर में मेहमान बनकर आए हों।

 * सुबह का जादुई नज़ारा: रात भर धीरे-धीरे हवा चलती रहती है, और जब सुबह सूरज उगता है, तो उसकी सुनहरी किरणें पहाड़ों की सबसे ऊँची चोटियों पर फैल जाती हैं। इससे पूरा पहाड़ सोने जैसा चमकने लगता है, जो देखने में किसी सपने जैसा लगता है।

 * चकवा-चकई का मिलन: कविता में चकवा और चकई नाम के दो पक्षी हैं। वे रात भर अलग रहते हैं, लेकिन सुबह होते ही वे फिर से एक-दूसरे से मिल जाते हैं। वे झील के किनारे हरी-हरी काई (शैवाल) पर प्यार से मिलते-जुलते हैं, जैसे वे अपनी खुशी मना रहे हों।

 * कस्तूरी मृग की अनोखी कहानी: कवि एक कस्तूरी मृग (एक तरह का हिरण) के बारे में भी बताते हैं। यह मृग बहुत ऊँचे और सुनसान पहाड़ों पर रहता है। उसकी नाभि (पेट के पास) से एक बहुत ही अच्छी खुशबू आती है, लेकिन उसे यह पता नहीं होता कि खुशबू उसी के शरीर से आ रही है। इसलिए वह अपनी ही खुशबू को ढूंढने के लिए पूरे जंगल में भटकता रहता है। यह हमें सिखाता है कि कभी-कभी सबसे अच्छी चीज़ें हमारे पास ही होती हैं, बस हमें उन्हें पहचानना होता है।

इस तरह, 'बादल को घिरते देखा है' कविता हमें हिमालय के पहाड़ों, उसकी सुंदर झीलों, प्यारे पक्षियों और कस्तूरी मृग की अनोखी कहानी के ज़रिए प्रकृति की अद्भुत सुंदरता का अनुभव कराती है। यह हमें प्रकृति से जुड़ना और उसकी ख़ूबसूरती को निहारना सिखाती है।



प्रश्न 3. कवि चकवा - चकई द्वारा किन मनोभावों को कविता में बताना चाहते हैं?

उत्तर: 'बादल को घिरते देखा है' कविता में कवि ने चकवा और चकई नाम के दो पक्षियों का ज़िक्र किया है। इन पक्षियों के ज़रिए कवि हमें दो ख़ास तरह की भावनाओं के बारे में बताना चाहते हैं:

 * बिछड़ने का दुख (विरह): कविता बताती है कि चकवा और चकई पक्षी रात भर एक-दूसरे से अलग रहते हैं। वे पूरी रात एक-दूसरे को याद करते हुए दुखी मन से आवाज़ें निकालते रहते हैं। यह हमें दिखाता है कि जब कोई अपने प्यारे दोस्त या परिवार से दूर होता है, तो उसे कितना दुख होता है।

 * मिलने की खुशी (प्रेम): लेकिन जैसे ही सुबह होती है, उनका यह बिछड़ने का दुख खत्म हो जाता है! वे दोनों फिर से एक साथ मिल जाते हैं और प्यार से एक-दूसरे के साथ खेलते हैं। यह हमें बताता है कि प्रेम कितना मज़बूत होता है, और अपने प्रियजन से मिलने पर कितनी खुशी मिलती है।

 इन चकवा-चकई पक्षियों के ज़रिए कवि हमें समझाना चाहते हैं कि प्रेम में बिछड़ने का दुख भी होता है और फिर से मिलने की बहुत बड़ी खुशी भी होती है। यह दिखाता है कि रिश्ते कितने ख़ास और अनमोल होते हैं!


प्रश्न 4. कवि ने कस्तूरी मृग का उल्लेख किस सन्दर्भ में किया है ?

उत्तर: बच्चों, हमारी कविता में एक खास हिरण का ज़िक्र है, जिसे कस्तूरी मृग कहते हैं। कवि ने इस हिरण के बारे में इसलिए बताया है ताकि हम एक ज़रूरी बात समझ सकें।

सोचो, एक हिरण है जिसके पेट में एक बहुत प्यारी खुशबू छुपी हुई है। उस खुशबू को 'कस्तूरी' कहते हैं। लेकिन मज़ेदार बात यह है कि उस हिरण को यह पता ही नहीं चलता कि वह खुशबू कहाँ से आ रही है! इसलिए वह पूरे जंगल में उस अच्छी महक को ढूंढता फिरता है, पर उसे कभी नहीं मिलती क्योंकि वह तो उसके अंदर ही है।

कवि इस हिरण की कहानी से हमें यह सिखाना चाहते हैं कि कभी-कभी जो चीज़ हमें चाहिए होती है, वह हमारे आसपास ही होती है, या फिर हमारे अंदर ही छुपी होती है। जैसे वह खुशबू हिरण के अंदर थी, वैसे ही हमारी अपनी खूबियाँ और खुशियाँ हमारे अपने अंदर ही हो सकती हैं। हमें उन्हें बाहर ढूंढने की बजाय अपने भीतर झाँकना चाहिए।

इसलिए, कवि ने कस्तूरी मृग का उदाहरण देकर हमें यह समझाया है कि हमें अपनी असली पहचान और अपनी खुशियों को अपने अंदर ही खोजना चाहिए।


प्रश्न 5. भाव स्पष्ट कीजिए –

(क) ऋतु बसंत का सुप्रभात था

मंद-मंद था अनिल बह रहा

बालारुण की मृदु किरणें थीं

अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे

संदर्भ:

ये पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक में दी गई कवि नागार्जुन की कविता 'बादल को घिरते देखा है' से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने हिमालय पर्वत और उसके आसपास की प्रकृति की सुंदरता का वर्णन किया है।

प्रसंग:

इन पंक्तियों में कवि हिमालय के ऊँचे पहाड़ों पर बसंत ऋतु की सुबह का बहुत ही प्यारा और मनमोहक दृश्य दिखा रहे हैं। वे बता रहे हैं कि उस समय का मौसम कैसा था और चारों ओर क्या-क्या दिख रहा था।

व्याख्या:

इन पंक्तियों में कवि एक बहुत ही सुंदर सुबह का चित्र बना रहे हैं:

 * "ऋतु बसंत का सुप्रभात था": कवि कहते हैं कि वह बसंत का बहुत ही सुंदर समय था। बसंत वह मौसम होता है जब पेड़-पौधे नए पत्तों और फूलों से भर जाते हैं, और हर तरफ़ हरियाली छा जाती है। 'सुप्रभात' का मतलब है बहुत अच्छी सुबह। तो, यह बसंत ऋतु की एक ताज़गी भरी और खुशनुमा सुबह थी।

 * "मंद-मंद था अनिल बह रहा": 'मंद-मंद' का मतलब होता है बहुत धीरे-धीरे। 'अनिल' का मतलब है हवा। कवि बताते हैं कि सुबह-सुबह हवा बहुत ही धीमी और प्यारी गति से बह रही थी। ऐसी हवा मन को बहुत शांति देती है और ताज़गी का एहसास कराती है।

 * "बालारुण की मृदु किरणें थीं": 'बालारुण' का मतलब होता है सुबह का नया-नया सूरज, जो अभी-अभी उगना शुरू हुआ हो। 'मृदु किरणें' का मतलब है उसकी कोमल और नरम किरणें, जो आँखों को अच्छी लगती हैं और चुभती नहीं हैं। तो, सुबह के इस सुंदर समय में, नए सूरज की प्यारी-प्यारी किरणें चारों ओर फैल रही थीं।

 * "अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे": 'स्वर्णाभ' का मतलब है सोने के रंग जैसा चमकता हुआ। 'शिखर' का मतलब है पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी। कवि कहते हैं कि जब सुबह के सूरज की मुलायम किरणें इन ऊँचे-ऊँचे हिमालयी पहाड़ों की चोटियों पर पड़ रही थीं, तो वे चोटियाँ सोने की तरह चमक रही थीं। यह नज़ारा इतना अद्भुत था कि ऐसा लगता था जैसे प्रकृति ने चारों ओर सोना बिखेर दिया हो।

भावार्थ (मुख्य मतलब): इन पंक्तियों में कवि ने बसंत ऋतु की हिमालयी सुबह का बहुत ही सुंदर और सजीव वर्णन किया है। वे हमें बताना चाहते हैं कि बसंत की सुबह कितनी शांत, ताज़गी भरी और सुंदर होती है, जहाँ सूरज की सुनहरी किरणें पहाड़ों को सोने जैसा चमका देती हैं। यह प्रकृति के अनुपम सौंदर्य का एक बेहतरीन उदाहरण है।



प्रश्न 5. भाव स्पष्ट कीजिए –

(ख) दुर्गम बर्फानी घाटी में

शत-सहस्त्र फुट ऊँचाई पर

अलख नाभि से उठने वाले

निज के ही उन्मादक परिमल

संदर्भ:

ये पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक में दी गई कवि नागार्जुन की कविता 'बादल को घिरते देखा है' से ली गई हैं। इस कविता में कवि हिमालय पर्वत और उसके आसपास की प्रकृति की सुंदरता का वर्णन करते हैं, और इसी क्रम में कस्तूरी मृग का उल्लेख करते हैं।

प्रसंग:

इन पंक्तियों में कवि हिमालय की बहुत ऊँची और बर्फीली जगहों पर रहने वाले कस्तूरी मृग (हिरण) की बात कर रहे हैं। वे बता रहे हैं कि कैसे यह मृग अपनी ही खुशबू को ढूंढने के लिए बेचैन होकर भटकता रहता है।

व्याख्या:

इन पंक्तियों में कवि हमें कस्तूरी मृग की कहानी के ज़रिए एक गहरी बात समझा रहे हैं:

 * "दुर्गम बर्फानी घाटी में": 'दुर्गम' का मतलब है जहाँ पहुँचना बहुत मुश्किल हो। 'बर्फानी घाटी' का मतलब है बर्फ से ढकी हुई गहरी जगह। कवि बताते हैं कि यह कस्तूरी मृग ऐसी बहुत ही कठिन और बर्फीली घाटियों में रहता है, जहाँ जाना आसान नहीं है।

 * "शत-सहस्त्र फुट ऊँचाई पर": 'शत-सहस्त्र' का मतलब है सैकड़ों-हज़ारों। यानी, यह हिरण धरती से सैकड़ों-हज़ारों फुट की बहुत ऊँची जगहों पर रहता है। यह हमें बताता है कि कितनी ऊँचाई पर यह अकेला जीव रहता है।

 * "अलख नाभि से उठने वाले": 'अलख' का मतलब है जिसे देखा या पहचाना न जा सके। कवि कहते हैं कि इस मृग की नाभि (पेट के पास) से एक बहुत ही खास और मनमोहक खुशबू निकलती है, जिसे 'कस्तूरी' कहते हैं। लेकिन वह खुशबू ऐसी है कि मृग उसे देख या पहचान नहीं पाता कि वह कहाँ से आ रही है।

 * "निज के ही उन्मादक परिमल": 'निज के ही' का मतलब है अपने ही शरीर से निकलने वाली। 'उन्मादक' का मतलब है पागल कर देने वाली या मदहोश कर देने वाली। 'परिमल' का मतलब है खुशबू। कवि कहते हैं कि यह हिरण अपनी ही शरीर से निकलने वाली उस बहुत ही तेज़ और मदहोश कर देने वाली खुशबू के कारण परेशान रहता है।

भावार्थ (मुख्य मतलब): इन पंक्तियों में कवि ने बताया है कि कस्तूरी मृग हिमालय की बहुत ऊँची और मुश्किल जगहों पर रहता है। उसकी अपनी नाभि से एक बहुत ही तेज़ खुशबू निकलती है, जिसके कारण वह बेचैन होकर उसे पूरे जंगल में ढूंढता रहता है, जबकि वह खुशबू उसी के अंदर होती है। कवि इस उदाहरण से यह समझाना चाहते हैं कि कई बार इंसान भी अपनी खुशियों, ज्ञान या अपनी खूबियों को बाहर की दुनिया में ढूंढते रहते हैं, जबकि वे सब उनके अपने अंदर ही मौजूद होती हैं। हमें अपनी अंदर की चीज़ों को पहचानना चाहिए।



पाठ से आगे —


प्रश्न 1. 'बादल को घिरते देखा है' कविता में उगते हुए सूर्य और उस समय के प्राकृतिक दृश्य का चित्रण हुआ है। उसी प्रकार अस्त होते सूर्य के संध्याकालीन दृश्य पर समूह में बैठकर चार-छः पंक्तियों की कविता रचना कीजिए।

उत्तर:

सूरज ढला, लाली छाई,

पंछी लौटे, नीड़ को धाई।

नभ में छिटकी, तारे आए,

दिन की थकान, संग ले जाए।

शांति पसरी, धरती सोई,

रात की चादर, धीरे से बोई।

यह कविता अस्त होते सूर्य और संध्याकालीन दृश्य का वर्णन करती है, जिसमें प्रकृति की शांति और दिन के ढलने का भाव है, जैसे 'बादल को घिरते देखा है' कविता में सुबह का वर्णन है। यह बच्चों के लिए भी समझने योग्य है।


प्रश्न 2. यहाँ सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी की कविता 'सखि बसंत आया' का कुछ अंश दिया जा रहा है। बसंत ऋतु में प्रकृति किस प्रकार का रूप धारण करती है? पंक्तियों के आधार पर उसके सौंदर्य का वर्णन कीजिए।

उत्तर:

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी की कविता 'सखि बसंत आया' में बसंत ऋतु का बहुत ही सुंदर और जीवंत चित्रण किया गया है। इन पंक्तियों के आधार पर बसंत ऋतु में प्रकृति निम्नलिखित रूप धारण करती है:

 * हर तरफ़ खुशी और नई रौनक: कविता की शुरुआत में ही बताया गया है कि 'सखि बसंत आया, भरा हर्ष वन के मन, नवोत्कर्ष छाया।' इसका मतलब है कि बसंत के आने से जंगल और प्रकृति का मन खुशी से भर गया है। हर जगह एक नई चमक और उत्साह (नवोत्कर्ष) छा गया है।

 * नए पत्ते और बेलें: 'किसलय-वसना नववय-लतिका' का अर्थ है कि पेड़ों पर नए-नए और कोमल पत्ते आ गए हैं, और जवान लताएं (बेलें) भी नए पत्तों से सज गई हैं। ऐसा लगता है जैसे प्रकृति ने नए, हरे रंग के कपड़े पहन लिए हों।

 * पेड़ों से मिलती बेलें: 'मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका' बताता है कि लताएं पेड़ों से ऐसे लिपट गई हैं, जैसे कोई अपनी प्रिय पत्नी अपने पति के हृदय से लिपट गई हो। यह प्रकृति के आपसी जुड़ाव और प्रेम को दर्शाता है।

 * भंवरों का मधुर गुंजन: 'मधुप-वृन्द बन्दी' से पता चलता है कि फूलों पर भंवरों के झुंड मंडरा रहे हैं और वे मीठी आवाज़ में गुंजन कर रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे वे बसंत का स्वागत कर रहे हों।

 * कोयल की मीठी बोली: 'पिक स्वर नभ सरसाया' का मतलब है कि कोयल की मीठी आवाज़ से पूरा आसमान गूँज उठा है और उसमें रस भर गया है। कोयल की आवाज़ बसंत की निशानी मानी जाती है।

 * फूलों और खुशबू से लदी लताएं: 'लता-मुकुल-हार-गन्ध-भार भर' पंक्तियाँ बताती हैं कि लताएं फूलों की कलियों (मुकुल) के हार से लद गई हैं और उनमें बहुत सारी खुशबू भर गई है। हवा चलने पर यह खुशबू चारों ओर फैल जाती है।

 * मंद-मंद बहती हवा: 'वही पवन बंद मन्द-मन्तर' का अर्थ है कि हवा पहले की तरह ही धीरे-धीरे और सुखद तरीके से बह रही है। यह हवा फूलों की खुशबू को अपने साथ लिए हुए है।

 * प्रकृति में यौवन का जादू: आखिरी पंक्तियाँ, 'जागी नयनों में वन- यौवन की माया' बताती हैं कि बसंत के आने से प्रकृति में एक युवा और ताज़ा जादू छा गया है। इसे देखकर लगता है जैसे जंगल में जवानी आ गई हो, और यह आँखों को बहुत भाता है।

संक्षेप में, बसंत ऋतु में प्रकृति पूरी तरह से बदल जाती है। हर तरफ़ नए पत्ते, फूल, भंवरों का गुंजन, कोयल की मीठी आवाज़ और मंद-मंद हवा चलती है, जिससे पूरा वातावरण खुशी और सुंदरता से भर जाता है। ऐसा लगता है जैसे प्रकृति ने यौवन का सुंदर रूप धारण कर लिया हो।


प्रश्न 3. कविता में प्रवासी पक्षियों का उल्लेख किया गया है। पता कीजिए मौसम के किस बदलाव के कारण प्रतिवर्ष प्रवासी पक्षी अनुकूल जलवायु के लिए दूर देश से आते हैं? साथ ही यह ज्ञात कीजिए कि भारत में प्रवासी पक्षी कहाँ-कहाँ से आते हैं, कितने समय तक ठहरते हैं और कब लौटते हैं?

उत्तर: बच्चों, हमारी कविता 'बादल को घिरते देखा है' में कवि ने उन पक्षियों के बारे में बताया है जो दूर देशों से उड़कर आते हैं। इन्हें 'प्रवासी पक्षी' कहते हैं।

वे क्यों आते हैं?

प्रवासी पक्षी हर साल इसलिए आते हैं क्योंकि जहाँ वे रहते हैं (जैसे साइबेरिया जैसे बहुत ठंडे इलाके), वहाँ सर्दियों में बहुत ज़्यादा बर्फ पड़ती है और कड़ाके की ठंड होती है। इतनी ठंड में उन्हें खाना नहीं मिल पाता और ज़िंदा रहना मुश्किल हो जाता है। इसलिए, वे ठंड से बचने और अच्छा खाना ढूंढने के लिए हजारों किलोमीटर उड़कर भारत जैसे गरम देशों में आते हैं, जहाँ का मौसम उनके लिए अच्छा होता है।

वे कहाँ से आते हैं और कब तक रहते हैं?

 * आते कहाँ से हैं: ज़्यादातर प्रवासी पक्षी रूस के साइबेरिया, यूरोप और मध्य एशिया जैसे ठंडे इलाकों से आते हैं।

 * कब आते हैं: ये पक्षी भारत में अक्टूबर या नवंबर के महीनों में आना शुरू करते हैं, जब उत्तरी देशों में ठंड बढ़ने लगती है।

 * कब लौटते हैं: ये पक्षी लगभग मार्च या अप्रैल तक भारत में रहते हैं। जब भारत में गर्मी बढ़ने लगती है और उनके अपने देश में ठंड कम होने लगती है, तो वे वापस अपने घरों को लौट जाते हैं।

 * भारत में कहाँ दिखते हैं: ये पक्षी भारत के कई जगहों पर देखे जा सकते हैं, खासकर ऐसी जगहों पर जहाँ झीलें, तालाब या जंगल हों। जैसे, राजस्थान में भरतपुर पक्षी अभयारण्य, गुजरात में कच्छ का रण, चिल्का झील (ओडिशा), और कई राज्यों के वेटलैंड्स (नम भूमि) में। आपके दिए गए उत्तर में औरंगाबाद (मध्य प्रदेश) और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ वन क्षेत्रों का भी उल्लेख है, जहाँ ये आसानी से देखे जा सकते हैं।

तो, ये पक्षी मौसम के बदलाव के कारण अपने जीवन को बचाने और बेहतर हालात ढूंढने के लिए इतनी लंबी यात्रा करते हैं!


भाषा विस्तार —


प्रश्न 1. अनिल, अनल जैसे युग्म शब्द, श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द कहलाते हैं। ऐसे ही सुनने में समान परंतु भिन्न अर्थ वाले कुछ युग्म शब्द दिए जा रहे हैं -

आप ऐसे ही युग्म शब्द खोजें एवं उसके अर्थ पता करें।

उत्तर: बच्चों, कुछ शब्द ऐसे होते हैं जो सुनने में एक जैसे लगते हैं, लेकिन उनके मतलब बिलकुल अलग होते हैं। ऐसे शब्दों को हम 'श्रुतिसमभिन्नार्थक' शब्द कहते हैं। यहाँ ऐसे ही कुछ और शब्द दिए गए हैं:

 * अनल – आग

   अनिल – वायु (हवा)

 * अक्षि – आँख

   अक्षी – आँख वाली (आँखों से संबंधित)

 * अभिज्ञ – जानकर (जिसे किसी बात की जानकारी हो)

   अविज्ञ – मूर्ख (जिसे कोई जानकारी न हो)

 * कुजन – दुर्जन (बुरा आदमी)

   कूजन – पक्षियों की कलरव क्रिया (पक्षियों का चहचहाना या मीठी आवाज़ निकालना)

कुछ और उदाहरण:

 * दिन – दिवस (सुबह से शाम तक का समय)

   दीन – गरीब (निर्धन व्यक्ति)

 * गृह – घर (रहने की जगह)

   ग्रह – आकाशीय पिंड (जैसे पृथ्वी, मंगल आदि)

 * अपेक्षा – आशा या उम्मीद

   उपेक्षा – अनादर या नज़रअंदाज़ करना

 * लक्ष्य – उद्देश्य या निशाना

   लक्ष – लाख (एक संख्या - 1,00,000)


प्रश्न 2. कविता में 'अमल', 'समथल', 'सुप्रभात', 'अभिशापित', 'दुर्गम', 'उन्मादक' आदि शब्द आए हैं।

(क) उपर्युक्त शब्दों में निहित उपसर्गों को अलग कीजिए यथा – अ + मल

(ख) इन उपसर्गों के योग (मेल) से बने पाँच-पाँच अन्य शब्दों को लिखिए।

उत्तर:

 उपसर्ग वे छोटे शब्द या अक्षर होते हैं जो किसी शब्द के शुरू में जुड़कर उसका मतलब बदल देते हैं। यहाँ दिए गए शब्दों में से उपसर्ग और मूल शब्द को अलग किया गया है, और उन उपसर्गों से बने कुछ और शब्द भी दिए गए हैं:

(क) उपसर्गों को अलग करना:

 * अमल = अ + मल

 * समथल = सम् + थल

 * सुप्रभात = सु + प्रभात

 * अभिशापित = अभि + शापित

 * दुर्गम = दुर् + गम

 * उन्मादक = उत् + मादक (या उद् + मादक)


(ख) इन उपसर्गों से बने पाँच-पाँच अन्य शब्द:

 * उपसर्ग 'अ' से बने शब्द:

   * अज्ञान (अ + ज्ञान)

   * अधर्म (अ + धर्म)

   * अमर (अ + मर)

   * अचल (अ + चल)

   * अभाव (अ + भाव)

 * उपसर्ग 'सम्' से बने शब्द:

   * संयोग (सम् + योग)

   * संतुष्ट (सम् + तुष्ट)

   * संगम (सम् + गम)

   * संभव (सम् + भव)

   * संवाद (सम् + वाद)

 * उपसर्ग 'सु' से बने शब्द:

   * सुपुत्र (सु + पुत्र)

   * सुगंध (सु + गंध)

   * सुगम (सु + गम)

   * सुदूर (सु + दूर)

   * सुयश (सु + यश)

 * उपसर्ग 'अभि' से बने शब्द:

   * अभिनंदन (अभि + नंदन)

   * अभिलाषा (अभि + लाषा)

   * अभिनय (अभि + नय)

   * अभिमान (अभि + मान)

   * अभ्यास (अभि + आस)

 * उपसर्ग 'दुर्' से बने शब्द:

   * दुर्भाग्य (दुर् + भाग्य)

   * दुर्बल (दुर् + बल)

   * दुर्गंध (दुर् + गंध)

   * दुर्जन (दुर् + जन)

   * दुर्लभ (दुर् + लभ)

 * उपसर्ग 'उत्' (या 'उद्') से बने शब्द:

   * उत्कर्ष (उत् + कर्ष)

   * उत्पत्ति (उत् 

+ पत्ति)

   * उन्नति (उत् + नति)

   * उत्तम (उत् + तम)

   * उद्योग (उत् + योग)





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