कक्षा 10 हिंदी
पाठ – 2.1 : मैं मज़दूर हूं
पाठ परिचय:
यह पाठ एक मज़दूर की ज़िंदगी, संघर्ष और आत्मसम्मान को दर्शाता है। इसमें लेखक ने मेहनतकश लोगों की महत्ता को संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया है।
मुख्य बिंदु:
- मज़दूर की मेहनत और आत्मगौरव
- सामाजिक असमानता की झलक
- श्रम की गरिमा
लेखक: — ( –डॉ भगवत शरण उपाध्याय)
प्रश्न 1. मजदूरों के प्रति सहानुभूति क्यों रखनी चाहिए?
उत्तर: आदिकाल से लेकर आज तक, मानव सभ्यता ने जो भी प्रगति और विकास किया है, उसमें मजदूरों का अतुलनीय योगदान रहा है। फैक्ट्रियों, खेतों, सड़कों, रेलवे और अन्य सभी भौतिक सुख-सुविधाओं के साधनों का निर्माण मजदूरों के अथक परिश्रम का ही परिणाम है। यह विडंबना है कि समस्त विश्व को सुविधाएँ प्रदान करने वाला मजदूर आज भी कई बार अभावग्रस्त और असहाय जीवन जीने को मजबूर है। उनका जीवन अक्सर चुनौतियों और कठिनाइयों से भरा होता है। इसलिए, हमें उनके प्रति गहरी सहानुभूति रखनी चाहिए। उनका सम्मान करना और उनके जीवन को बेहतर बनाने में योगदान देना हमारा नैतिक दायित्व है।
प्रश्न 2. मजदूर के पारिवारिक जीवन का हाल कैसा होता है? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर: पाठ के अनुसार, मजदूरों का पारिवारिक जीवन अक्सर कठिन और संघर्षों से भरा होता है। आदिकाल से लेकर आज तक, मजदूरों और उनके परिवारों को दैनिक आवश्यकताओं जैसे उचित मजदूरी, रहने के लिए पर्याप्त जगह, चिकित्सा सुविधाएँ और बच्चों के लिए स्वास्थ्य व शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव का सामना करना पड़ता है। इन अभावों के कारण एक मजदूर का परिवार अक्सर उन्नति नहीं कर पाता और पीढ़ी दर पीढ़ी मजदूरी के पेशे में ही बंधा रह जाता है। मजदूरों के अधिकारों और उनके सम्मान के प्रति ठोस दिशा-निर्देशों के अभाव के कारण उनका निरंतर शोषण होता रहता है। यही कारण है कि मजदूर और उनका परिवार अक्सर अभावों और असुविधाओं के बीच जीवन यापन करने के लिए विवश हैं।
प्रश्न 3. "दुनिया में क्या नहीं? कौन सी चीज मैंने अपने हाथो पैदा नहीं की?" इस कथन को ध्यान में रखकर मजदूरों के द्वारा किए गए निर्माण कार्यों को अपने शब्दों में लिखिए?
उत्तर: जिस प्रकार वायु के बिना जीवन की कल्पना करना असंभव है, उसी प्रकार मजदूरों के योगदान के बिना आज की प्रगति, सुविधाएँ और विकास अकल्पनीय हैं। मजदूरों ने आदिकाल से लेकर आज तक मानव सभ्यता के हर बड़े निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाई है।
प्राचीन युग में, मिस्र के पिरामिड, चीन की दीवार, ताजमहल और लाल किला जैसी ऐतिहासिक धरोहरों का निर्माण मजदूरों के अथक परिश्रम का ही परिणाम है। वर्तमान युग में, सूई से लेकर विशाल हवाई जहाज तक, खनिज उत्पादन से लेकर कृषि उत्पादों तक, बाँधों के निर्माण से लेकर बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने तक – ये सभी कार्य मजदूरों के श्रम से ही संभव हुए हैं।
आज के मशीन युग में भी मजदूरों का योगदान किसी भी तरह से कम नहीं हुआ है। मशीनों को बनाने, संचालित करने और उनका रखरखाव करने में भी मानवीय श्रम की आवश्यकता होती है। सच कहें तो, दुनिया में ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जिसका निर्माण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मजदूरों के हाथों न हुआ हो। उनका योगदान अतुलनीय और सर्वव्यापी है।
प्रश्न 4. "दिन सोता था रात सोती थी, पर मै जगता था !" का आशय क्या है?
उत्तर: यह कथन श्रमिकों के निरंतर श्रम और उनके कर्तव्यपरायणता को दर्शाता है। इसका अर्थ यह है कि मजदूर दिन-रात, बिना रुके अपने कार्यक्षेत्र में डटे रहते हैं। वे अपने कर्तव्य के प्रति इतने समर्पित होते हैं कि संसार की कोई भी आपदा, खुशी, त्योहार या परिस्थितियाँ उन्हें विचलित नहीं कर सकतीं। वे हर पल अपने कर्तव्य की ओर अग्रसर रहते हैं, चाहे समय कोई भी हो। यह कथन उनके अथक परिश्रम, समर्पण और अटूट कर्तव्यनिष्ठा को उजागर करता है।
प्रश्न 5. पाठ में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें मजदूरों की विवशता दिखाई देती है?
उत्तर: मजदूरों की विवशता दर्शाने वाली पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं:
* उनकी (ही ही) चमक के नीचे मेरी काली अंधियारी ज़िंदगी है।
* मैं ज़मीन को जोत बोकर सोना उगलने के लिए मजबूर करता था, वह सोना खुद मेरे लिए नहीं था। मेरे लिए सोना आग था जिसे ठुककर मुझे शूल की नोक पर चलना था।
* मैं उस ज़मीन के साथ बंधा ज़रूर था। उस ज़मीन की तरह मैं भी निरीह था, ज़मीन बेची जाती थी, मैं भी उसी के साथ नए जानवरों के जैसे बिक जाता था। न ही ज़मीन को अपनी उपज खाने का हक था न ही मुझे। प्राचीन काल से ही मेरी संज्ञा घर के मवेशियों की थी।
* मेरे बाल-बच्चे। उनके न ही घर थे न द्वार।
* मैं तो तेली का बैल हूँ, मुझे कहीं भी नाथ दो, मैं चलता ही जाऊँगा।
* मैं भूखा हूँ, नंगा हूँ पर क्या ये मिले मेरी भूख शांत कर सकती है और मेरी नम्रता ढक सकती है।
प्रश्न 6. निर्माण के प्रति मजदूरों की निरंतर प्रतिबद्धता किन - किन बातों में जाहिर होती है?
उत्तर: निर्माण के प्रति मजदूरों की प्रतिबद्धता निम्नलिखित पंक्तियों के माध्यम से जाहिर होती है:
* मैं मेहनतकश मज़दूर हूँ, जीवनबद्ध श्रम शक्ति की इकाई मैं हूँ।
* मैंने निरंतर विकास किया है, विध्वंस न करूँगा। यदि करना हुआ तो पुनर्निर्माण करूँगा। मेरे निर्माण की परिधि की व्यापकता अनंत है।
* जंगल काटकर मैंने गाँव खड़े किए, नगर और कसबे।
* बढ़ते हुए समुन्दर को मैंने सुलाया, दलदलों को ठोस ज़मीन का जामा पहनाया और उनपर फसलों की हरी क्यारियाँ दौड़ाईं।
पाठ के आगे —
प्रश्न 1. मजदूर नहीं होते तो हमारी दुनिया के विकास कार्यों का क्या होता? कल्पना कर अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: मजदूरों के बिना हमें वर्तमान प्रगति, संपन्नता और सुविधाओं की आशा करना असंभव है, क्योंकि:आदिकाल से ही मजदूरों और श्रमिकों ने इस भूमि को जोत-बोकर उसे कृषि के योग्य बनाया। उन्हीं के अथक श्रम के कारण ही आज हम खदानों से खनिजों को निकालकर उनका उपयोग कर सकने में सफल हुए हैं।
यदि मजदूर हमारे कल-कारखानों (फैक्ट्रियों) में अपना खून-पसीना नहीं बहाते, तो आज भी हम आदिकाल के मनुष्यों की तरह जीवन यापन कर रहे होते।
सड़कें, नहरें, रेलवे, हवाई जहाज और जितने भी यातायात के साधन जिनका हम उपभोग कर रहे हैं, वे केवल और केवल इन्हीं श्रमिकों के बदौलत संभव हैं। इन्हीं कारणों से हम कह सकते हैं कि आज मानव समाज और सभ्यता जिस गगनचुंबी इमारत पर विद्यमान है, उस इमारत की नींव की ईंट ये मजदूर और श्रमिक हैं। जिनके योगदान के बिना यह सब संभव न था।
प्रश्न 2. आज भी देश - विदेशों में कई जगहों पर जानवरों की लड़ाइयों का आयोजन किया जाता है। इन लड़ाइयों में कई बार जानवरों व इंसानों की मृत्यु तक हो जाती है। क्या इस प्रकार के आयोजन उचित हैं? अपने विचार तर्क सहित दीजिये।
उत्तर: आज के आधुनिक और सभ्य समाज में जानवरों और इंसानों की खूनी लड़ाइयों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। क्योंकि इस तरह के आयोजन और खेल यदि किसी समाज में आज भी होते हैं, तो यह मानवता और हमारे सभ्य होने पर गंभीर प्रश्न चिह्न उठाते हैं। बेजुबान जानवरों और निरीह इंसानों के प्रति इस तरह के खूनी खेल अत्याचार की श्रेणी में आते हैं।
ये आयोजन न केवल जानवरों के प्रति क्रूरता दर्शाते हैं, बल्कि मानव जीवन को भी खतरे में डालते हैं। ये किसी भी प्रकार से मनोरंजक या सांस्कृतिक नहीं माने जा सकते, बल्कि ये अमानवीयता और बर्बरता का प्रतीक हैं। एक सुसंस्कृत समाज में जीवन के प्रति सम्मान और करुणा सर्वोपरि होती है, और ऐसे हिंसक आयोजनों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
प्रश्न 3. फैक्टरी में काम करते हुए घायल/दुर्घटनाग्रस्त (दिव्यांग) मजदूरों के प्रति मालिकों की क्या-क्या जिम्मेदारियां होनी चाहिए?
उत्तर: फैक्टरी में काम करते हुए घायल/दुर्घटनाग्रस्त (दिव्यांग) मजदूरों के प्रति उनके मालिकों को निम्नलिखित जिम्मेदारियों का निर्वहन करना चाहिए:
* बीमा की व्यवस्था: प्रत्येक मजदूर की दुर्घटना बीमा की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि किसी भी अनहोनी की स्थिति में उन्हें आर्थिक सुरक्षा मिल सके।
* तत्काल चिकित्सा और मुआवजा: यदि मजदूर किसी दुर्घटना में घायल हो जाता है, तो उसे तुरंत और उचित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए। साथ ही, उसकी चोट की गंभीरता के अनुसार त्वरित और पर्याप्त मुआवजे की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
* मृत्यु होने पर सहयोग: यदि किसी दुर्घटना में मजदूर की मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिवार को उचित मुआवजा देने के साथ-साथ परिवार के किसी एक योग्य सदस्य को नौकरी देने की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि परिवार का भरण-पोषण हो सके।
* सुरक्षित आवास: मजदूरों के रहने के लिए स्वच्छ और सुरक्षित पक्के घर की व्यवस्था होनी चाहिए, जो काम के माहौल के पूरक हों।
* स्वास्थ्य सुविधाएँ: मजदूरों के परिवार के लिए उचित और प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जिसमें नियमित जांच, दवाइयां और आपातकालीन सेवाएं शामिल हों।
* शुद्ध पेयजल: मजदूरों तथा उनके परिवारों को पीने हेतु शुद्ध जल की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि वे बीमारियों से बचे रहें।
* शिक्षा और खेलकूद: मजदूरों के बच्चों को शिक्षा और खेल आदि की व्यवस्था उचित रूप से होनी चाहिए, ताकि उनका सर्वांगीण विकास हो सके और वे बेहतर भविष्य बना सकें।
* सुरक्षित और स्वच्छ आवास: मजदूरों को रहने के लिए सुरक्षित, स्वच्छ और पर्याप्त आवास उपलब्ध होने चाहिए।
* उचित मजदूरी: उन्हें इतनी मजदूरी मिलनी चाहिए जिससे वे सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें और अपनी तथा अपने परिवार की बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकें।
* सामाजिक सुरक्षा: पेंशन, भविष्य निधि (PF) और अन्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ उन्हें मिलना चाहिए।
* कार्यस्थल पर सुरक्षा: काम करने की जगह पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होने चाहिए, जिससे दुर्घटनाओं का जोखिम कम हो।
प्रश्न 4. कश्मीर का नाम सुनते ही आपके मन में उसकी क्या - क्या छवियाँ उभरती हैं? चर्चा करके लिखिए।
उत्तर: कश्मीर का नाम सुनते ही हमारे मन में तत्काल प्राकृतिक सौंदर्य, ऊँचे-ऊँचे बर्फ से ढके पर्वतों और शांत झीलों का मनमोहक दृश्य जीवंत हो उठता है। इसे अक्सर "धरती का स्वर्ग" कहा जाता है और यह अपने अद्भुत प्राकृतिक नजारों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है।
यहाँ अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें प्रमुख निम्न हैं:
* श्रीनगर: अपनी डल झील, शिकारा और मुगल उद्यानों के लिए प्रसिद्ध।
* गुलमर्ग: सर्दियों में स्कीइंग के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य और गर्मियों में हरी-भरी ढलानों वाला खूबसूरत स्थान।
* सोनमर्ग: "सोने का चारागाह" के रूप में जाना जाता है, जो अपनी सुरम्य घाटियों और ग्लेशियरों के लिए प्रसिद्ध है।
* लेह: हालांकि भौगोलिक रूप से लद्दाख का हिस्सा, इसे अक्सर कश्मीर के साथ जोड़ा जाता है, जो अपने ऊँचे पहाड़ों और बौद्ध मठों के लिए जाना जाता है।
कश्मीर अपने भव्य ट्यूलिप गार्डन के कारण भी जाना जाता है, जो वसंत ऋतु में हजारों रंग-बिरंगे ट्यूलिप फूलों से भर जाता है। कश्मीर के सेब और केसर आज पूरे विश्व में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, जो अपनी गुणवत्ता और स्वाद के लिए जाने जाते हैं।
इस क्षेत्र ने बहुत से सूफी संत दिए हैं, जिनकी रचनाओं ने समाज को नई दिशा और शांति का संदेश दिया है। कश्मीरी साहित्य, विशेषकर कल्हण की 'राजतरंगिणी' जैसे ग्रंथों में, कश्मीर के अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य और समृद्ध इतिहास का वर्णन मिलता है। संक्षेप में, कश्मीर शांति, सौंदर्य और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है।
प्रश्न 5. प्राचीन काल में गृहणियों को ऋषियों द्वारा दी जाने वाली हिदायत 'साम्राज्ञी द्विपदश्चतुष्पद' में मजदूरों (इंसानों) की साम्यता पशुओं से करना क्या सही था? तर्क सहित उत्तर दीजिये।
उत्तर: प्राचीन काल में मजदूरों, स्त्रियों और पशुओं को एक ही श्रेणी में रखा जाता था, यह एक खेदजनक और अमानवीय प्रथा थी। इस प्रकार की तुलना या वर्गीकरण न केवल अनुचित था, बल्कि अमानवीय भी था। इन वर्गों के पास अपने लिए कोई मौलिक अधिकार नहीं थे और वे समाज में अक्सर गुलामों की तरह जीवन यापन करते थे। यह स्थिति मानव गरिमा का पूर्ण उल्लंघन थी।
हालांकि, धीरे-धीरे जब मानव समाज जागरूक हुआ, तो इन वंचित वर्गों के पक्ष में आवाजें उठने लगीं। आज इनकी स्थिति में बहुत सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी बहुत से सुधारों की गुंजाइश बाकी है। किसी भी सभ्य समाज में इस प्रकार की टिप्पणी, जिसका उद्देश्य किसी वर्ग, लिंग और समुदाय को आहत करना या नीचा दिखाना हो, पूरी तरह से अक्षम्य और अस्वीकार्य है। प्रत्येक मनुष्य को समान सम्मान और
अधिकार मिलना चाहिए, चाहे उसकी सामाजिक स्थिति, लिंग या पेशा कुछ भी हो।
प्रश्न 6. "पिस्सू और खटमल तक की जाने निकालने देख कर एक बार घबरानेवाला मैं दानव की भाँति दिन-रात चलती मशीनों से संहार के साधन सिरजाता जा रहा हूँ, क्योंकि मेरा कारखाना हथियारों का है, तोप-बंदूकों का, गोले-बारूद का, बम का।"
(क) लेखक ने इन पंक्तियों में किस वैश्विक समस्या की ओर संकेत किया है? यदि यह समस्या ऐसे ही बढ़ती रही तो उससे मानव के अस्तित्व को क्या-क्या खतरे हो सकते हैं?
उत्तर: लेखक उपरोक्त पंक्तियों के आधार पर यह कहना चाह रहा है कि, एक तरफ मजदूर जो कि उसका खून पसीना बहा कर पिस्सू और खटमल जैसे छोटे जीवों को मारने में भी घबराता है, वही मनुष्य आज ऐसे विनाशकारी हथियारों का निर्माण कर रहा है जिनसे मानव संहार का बड़ा खतरा मंडरा रहा है। आज का मनुष्य अपनी महत्वकांक्षा और लालच को पूरा करने के लिए अंधा हो चुका है। पूरी दुनिया आज बारूद के ढेर पर बैठी हुई है। अगर इस समस्या को ऐसे ही बढ़ने से रोका नहीं गया तो वह दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया का विनाश हो जाएगा। यह पंक्तियां मानवता के विनाश की ओर बढ़ रहे कदम और हथियारों की होड़ की वैश्विक समस्या की ओर इशारा करती हैं।
(ख) इन खतरों को दूर करने के लिए विश्व स्तर पर क्या-क्या निर्णय लेने होंगे?
उत्तर: इस तरह के खतरों को रोकने के लिए समस्त विश्व से, खासकर नक्सलवाद, पूंजीवाद, साम्राज्यवाद और धार्मिक उन्माद को समाप्त करना होगा, क्योंकि किसी भी समस्या की मूल में यही सब कारण होते हैं। इसके लिए समस्त विश्व को एक मत होकर एक मंच पर आना होगा। संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थाओं को और भी प्रभावी बनाना होगा। आज भी इस युग में भारतीय विचार "वसुधैव कुटुम्बकम्" बहुत ज्यादा प्रभावी और तर्क संगत है। पूरे विश्व को एक मत होकर सामूहिक जन संहारक हथियारों पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाना ही इस चुनौती से निपटने का कारगर तरीका हो सकता है। विश्व शांति और सद्भाव को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है।
प्रश्न 1. निम्नलिखित दोनों वाक्यों को ध्यान से पढ़िए और समझिए–
(क) मैं मेहनतकश मजदूर हूँ।
(ख) मैंने वहाँ भी गोरी दुनिया का पेट भरा।
वाक्य 'क' का स्पष्टीकरण: वाक्य 'क' को पढ़ने से आप पाएंगे कि उसका अर्थ आसानी से समझ आता है। इस प्रकार जिस वाक्य का साधारण शाब्दिक अर्थ और भावार्थ समान हो उसे 'अभिधा शब्द शक्ति' कहते हैं। इससे उत्पन्न भाव को 'वाच्यार्थ' भी कहते हैं।
वाक्य 'ख' का स्पष्टीकरण: वाक्य 'ख' में 'गोरी दुनिया' अर्थात गोरे रंग की दुनिया की बात न होकर, गोरे लोगों की दुनिया अर्थात यूरोप को लक्ष्य कर बात कही गई है। इससे शब्द को वाच्यार्थ या मुख्यार्थ से भिन्न उसका अन्य अर्थ प्रकट होता है। इससे उत्पन्न भाव को 'लक्ष्यार्थ' कहा जाता है और इस शब्द शक्ति को 'लक्षणा' कहते हैं।
निम्नलिखित वाक्यों में किस शब्द शक्ति का प्रयोग हुआ है, पहचानकर लिखिए–
(क) रमेश के कान नहीं हैं।
(ख) सीता गीत गाती है।
(ग) मोहन बैल है।
(घ) हमारी मिलो ने काफी।
(ड़) धोकन्ना अच्छा हाथी बात है।
उत्तर:
(क) रमेश के कान नहीं हैं। - लक्षणा शब्द शक्ति (अर्थ: रमेश ध्यान से नहीं सुनता या बात नहीं मानता)
(ख) सीता गीत गाती है। - अभिधा शब्द शक्ति (सीधा अर्थ: सीता गाना गा रही है)
(ग) मोहन बैल है। - लक्षणा शब्द शक्ति (अर्थ: मोहन बहुत मूर्ख या सीधा है)
(घ) हमारी मिलों ने क्रांति की। - लक्षणा शब्द शक्ति (यहाँ 'क्रांति' का शाब्दिक अर्थ (सशस्त्र विद्रोह) नहीं है, बल्कि इसका लाक्षणिक अर्थ है कि मिलों में बहुत बड़ा या महत्वपूर्ण परिवर्तन/विकास हुआ है।)
(ड़) चौकन्ना रहना अच्छी बात है। - अभिधा शब्द शक्ति (यहाँ वाक्य का सीधा और मुख्य अर्थ ही प्रकट हो रहा है कि सतर्क या सावधान रहना अच्छी आदत है।)
योग्यता विस्तार —
प्रश्न 1. मिस्र स्थित गिज़ा का पिरामिड संसार के सात आश्चर्यों में से एक है जिसके निर्माण के समय ज़्यादा सुविधा युक्त उपकरण एवं संसाधन न होते हुए भी मज़दूरों के अथाह परिश्रम का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ये सात आश्चर्य कौन – कौन से हैं? इनके बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- (1) ताजमहल - भारत की सबसे अनमोल धरोहर ताजमहल दुनिया के सात अजूबों में से एक है। अपनी खूबसूरत कलाकारी आकृति की वजह से उसे अजूबा बोला गया था। ताजमहल का निर्माण सन १६३२ में शाहजहाँ द्वारा कराया गया था। यह एक प्यार की निशानी है जिसे शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में बनाया था।
(2) गीज़ा का पिरामिड - दुनिया के सात अजूबों में गीज़ा का महान पिरामिड सबसे ऊँचा है। यह पिरामिड २५६० ईसा पूर्व के करीब बनाया गया था। यह ३८०० सालों से दुनिया की सबसे ऊँची बनावट है। प्राचीन मिस्र के कुफू पिरामिड को महान गीज़ा पिरामिड के नाम से जाना जाता है।
(3) माचू पिचू पेरू - दक्षिण अमेरिका के पेरू में स्थित माचू पिचू एक ऊँची चोटी पर स्थित शहर हुआ करता था। समुद्र तल से २४३० मीटर ऊपर, १५वीं शताब्दी में इसमें इंका सभ्यता रहती थी। पुरातत्वविदों का मानना है कि माचू पिचू का निर्माण राजा पया कुती ने १४०० के आस-पास करवाया।
(4) रोम का कोलोसियम - रोम के इटली में बसा यह एक विशाल स्टेडियम है। यह रोम का मुख्य आकर्षण है। निर्माण 72 ईस्वी शुरू हुआ था। ओवल शेप की ये विशाल आकृति कंक्रीट व रेत से बनाई गई थी। इतनी पुरानी ये वास्तुकला आज भी दुनिया के सात अजूबों में अपनी जगह बनाये हुए है।
(5) सक्कारा - सक्कारा मिस्र में एक विशाल प्राचीन दफन जमीन है। प्राचीन मिस्र की राजधानी मेम्फिस के लिए नेक्रोपोलिस के रूप में सेवा करते हैं। सक्कारा में कई पिरामिड है, जिनमें जोसेसर के विश्व प्रसिद्ध स्टेप पिरामिड शामिल है। कभी-कभी इसके आयताकार आधार के कारण स्टेप मकबरे के रूप में भी जाना जाता है।
(6) चीन की दीवार - चीन की इस विशाल दीवार के बारे बारे में कौन नहीं जानता। यह दीवार कई हिस्सों में वहाँ के शासकों द्वारा अपनी राज्य की रक्षा के लिए बनाई गई थी जिसे धीरे-धीरे जोड़ दिया गया था। इसका निर्माण सातवीं शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी तक हुआ था।
प्रश्न 2. अपने आसपास रहने वाले किसी मजदूर से बातचीत करके उसकी पूरे दिन की दिनचर्या के बारे में पता कीजिए।
उत्तर: एक मजदूर का जीवन: एक दैनिक संघर्ष की कहानी
हाल ही में, हमारे निर्माण स्थल पर चल रहे कार्य के दौरान, मुझे एक मजदूर के साथ बातचीत करने और उसके जीवन को करीब से समझने का अवसर मिला। यह बातचीत मेरे लिए बेहद मार्मिक रही, क्योंकि इसने मुझे उसके दैनिक संघर्षों और चुनौतियों से परिचित कराया।
उस मजदूर ने बताया, "मैं एक मजदूर हूँ, और मजदूरी ही मेरा जीवन है। मेरे पास न कोई धर्म है और न ही जाति। मेरा जन्म गरीबी में हुआ है, और मैं अभावों के सहारे अपना जीवन व्यतीत कर रहा हूँ। मेरे भाग्य में मजदूरी करना ही लिखा है।"
उन्होंने बताया कि उन्होंने कभी आराम का जीवन नहीं जिया, और गरीबी के कारण वे पढ़ाई भी नहीं कर सके। "मैं अनपढ़ हूँ, मेरा कोई असली नाम नहीं है। लोग मुझे बस 'मजदूर' के नाम से जानते हैं," उन्होंने कहा। "जिस दिन मैं काम नहीं करता, उस दिन मेरा चूल्हा नहीं जलता। मुझे हर रोज़ कुओं को खोदना और पानी ढोना जैसे काम करने पड़ते हैं।"
मजदूर ने आगे बताया कि उनका पूरा परिवार एक साथ मिलकर मजदूरी करता है। "हमारे जीवन की विडंबना ही अभाव है। हम घर बनाते हैं, कपड़े बनाते हैं, और खेतों में अनाज उगाते हैं, परन्तु इन सभी सुविधाओं के अभाव से पीड़ित हैं। हम घ्रस्त्व में कोल्हू के बैल के समान हैं।"
उन्होंने अंत में एक उम्मीद जताई, "हमें अपने सभी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सरकार की मदद की आवश्यकता है। हमारे मजदूर संगठन को भी हमारे लिए कुछ करना होगा, तभी हमारी दशा सुधर सकती है।"
यह बातचीत हमें समाज के उस वर्ग की याद दिलाती है जो हमारे दैनिक जीवन का आधार है, फिर भी सबसे अधिक अभावों में जीता है। उनके संघर्षों को समझना और उनके उत्थान के लिए प्रयास करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
प्रश्न 3. मजदूरों का जीवन स्तर ऊँचा उठाने के लिए सरकार द्वारा क्या - क्या योजनाएँ बनाई गई हैं? चर्चा करके सूची तैयार कीजिए।
उत्तर - मजदूरों का जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार की कई योजनाएं वर्तमान समय में चल रही है।
(1) केंद्र सरकार की योजनाएं -
(i) प्रधानमंत्री जीवन सुरक्षा योजना,
(ii) जीवन ज्योति योजना
(iii) अटल पेंशन योजना,
(iv) मनरेगा योजना।
(2) छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा संचालित योजनायें -
(i) भगिनी प्रसूति सहायता योजना।
(ii) भूमिहीन कृषि मजदूर योजना
(iii) मुख्यमंत्री सुपोषण योजना,
(iv) मुख्यमंत्री शहरों स्लम योजना
(v) गोधन न्याय योजना
(vi) सुराजी गांव योजना
(vii) प्रबल योजना आदि।